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श्रीवरकृता
दीपवृक्षो नृवाह्योऽपि यत्र रङ्गान्तरे स्फुरन् । तारकामध्योद्यत्कृत्तिकर्क्षचयोपमाम् ।। ९४ ।।
१:५:९४-९६ ]
द
९४. जहाँ पर रंगमण्डप मध्य मनुष्यवाही दीप वृक्ष, तारकाओं के मध्य, उदित होते कृत्तिका' नक्षत्र पुंज की उपमा धारण कर रहा था ।
विजयेशदत्थाय
भूपः
पुत्रद्वयान्वितः । पद्भ्यामुल्लङ्घय दुर्मार्गं प्रपेदे वासरैस्त्रिभिः ॥ ९५ ॥
९५. दोनों पुत्रों सहित, राजा विजयेश से चलकर, पावों से ही दुर्मार्ग लांघकर, तीन दिनों में पहुंच गया ।
दृष्ट्वा
क्रमसरोविष्णुपादमुद्राकृतिं
१६७
प्रभुः ।
भक्तिसुन्दरः ।। ९६ ।
पादप्रणामजानन्दमविन्दद्
९६. भक्ति से सुन्दर स्वामी क्रमसर' विष्णुपाद मुद्रा की आवृति देखकर पाद प्रणाम करने का आनन्द प्राप्त किया ।
और बुध दीप्तमान रहते हुये भी दिन में दिखायी नही पडते, यद्यपि रात्रि रूपी रंगमंच पर शोभित होते है ।
पाद-टिप्पणी :
९४. (१) कृत्तिका नक्षत्र : पुराणों के अनुसार प्रचेता दक्ष को दी गयी सत्ताइस कन्याओं में एक है । चन्द्रमा की पत्नी थी । कार्तिकेय का पालन की थी। सत्ताइस नक्षत्रों में यह तीसरा नक्षत्र है । इस नक्षत्र समूह में ६ तारें हैं। जिनका संयुक्त आकार अग्निशिखा के समान लगता है । एक मत है कि कृत्रिका की अधिष्ठात्री अग्नि है । भागवत ( ६ : ६) तथा (५ : २७ ) के अनुसार अग्नि नामक वसु की पत्नी है । कृत्तिका का रूप धरा के समान वर्णित किया गया है । इसके स्वामी अग्नि इसका शत पद चक्र : अ इ उ ए है । कृत्तिका का योग धूम्र की पालन करनेवाली है । तथा दिन रवि है ।
समीप
समूह
ज्योतिष के अनुसार यह वृष राशि के है । दूरदर्शक यन्त्र से देखने पर इसके तारा शत से अधिक दृष्टिगोचर होते है । उनके मध्य धुंधली छाया दिखायी देती है । एक मत है कि यह निहारिका है । कृत्तिका की दूरी पृथ्वी से लगभग ५००
प्रकाश वर्ष है। इस तारापुंज में ३०० से ५०० तक तारे है । वे ५० प्रकाश वर्ष के वृत्त मे बिखरे है । तारों का घनत्व केन्द्र मे अधिक है ।
सूर्य इस नक्षत्र में प्रथम अंश मे होते है, तो चन्द्रमा विशाखा के चतुर्थ अंश में होता है । सूर्य विशाखा के तृतीय चरण मे हो तो कृत्तिका के सिर पर स्थित होता है । महर्षियों ने इसे विषुव लिखा है ( ब्रह्मा० : २ : २१:१७, १४५ २४ : १३०; ३ : १० : ४४, १८ : २; वायु० : ६६ ४८; ८२ : २, महा० वन० २३० : ५, ११, ८४ : ५१; अनु० ६४ : ५) । कृत्तिका का अधिपति देवता अग्नि है । सत्ताइस नक्षत्रों में तीसरा नक्षत्र है । इसमे ६ तारे है । इनका संयुक्त आकार अग्निशिखा के समान लगता है । कृत्तिका चन्द्रमा की पत्नी तथा कार्तिकेय
पाद-टिप्पणी :
९५. (१) दुर्मार्ग : श्रीदत्त ने दुर्मार्ग स्थानवाचक नाम माना है ।
पाद-टिप्पणी :
९६. ( १ ) क्रमसर कौसर नाग = नोबन्धन