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१:६:७-९] श्रीवरकृता
१७५ किंनरोऽश्वमुखः ख्यातः कण्ठान्नृत्यं न वेत्यसौ ।
इतीव नाटयं यो दर्पाद् वरारूढोऽकरोत् पथि ।। ७ ॥ ७. अश्वमुख निन्नर' कलकण्ठ के कारण प्रसिद्ध है, परन्तु नृत्य नही जानते, इसीलिये मानो वह अश्व मार्ग में नर्तन किया, जिस पर राजा आरूढ़ था ।
प्रवालहस्तः सद्रश्मिः सुखलीनः सुलक्षणः ।
यथासावहमित्थं यो नासहिष्टास्य ताडनम् ॥ ८॥ ८. जिस प्रकार यह राजा प्रवाल', हस्त, सद्रश्मि, सुखलीन, सुलक्षण" है, उसी प्रकार मैं भी हूँ, इसीलिये उस अश्व ने इसका ताड़न सहन नहीं किया।
पादैश्चतुर्भिः शुभ्रो यो मुखमध्येन चावहत् ।
कल्याणपञ्चकख्याति कल्याणाभरणोज्ज्वलः ॥९॥ ९. सुवर्ण भरण से उज्वल (सुन्दर,) चारों पदों एवं सुख के मध्य भाग से भी उज्वल, वह अश्व पंचकल्याण' की प्रसिद्धि से युक्त था। पाद-टिप्पणी :
है और पाँचों की आभा रत्नों द्वारा अंकित की गयी ७. (१) अश्वमुख किन्नर : संस्कृत साहित्य है । मंगल का तेज बताने के लिये प्रवाल है। में 'किन्नरा अश्वादिमुखा नराकृतयः' लिखा गया है।
(२) हस्त : बुध की आभा नील नभ के अर्थात् उनका मुख अश्वों के समान होता है। अमर- समान है। अर्थात् हस्त मे पाँच ऊँगलियाँ बुध के कोषकार ने भी-'स्यात् किन्नरः किम्पुरुषस्तुरंग मिश्रित वर्ण के प्रतीक हैं। वदनो मयुः' उन्हें तुरंग बदन कहा है। तुरग का (३) सदस्मि : गुरु का वर्ण पीत है। घोर अर्थ अश्व होता है ( अमर० : १ : २ . ७४)। पीत वर्ण को सद्रश्मि एवं मंगलदायक मानते है। द्रष्टव्य पाद-टिप्पणी : १ : ५ : १०१।-'गीतरतपः (४) सुखलीन : शुक्र की आभा बैगनी (वायकिन्नरः' गान में रति रखनेवालों को किन्नर की लेट) मानी जाती है। देखने में सुन्दर लगता है । संज्ञा जैन ग्रन्थकारों ने दी है (ध० १३ : ५ : ५; अतः सुखलीन श्लिष्ट शब्द का प्रयोग किया गया १४० : ३९१ :८)। दश वर्गों में उनकी गणना है। की गयी है-(१) किंपुरुष, (२) किन्नर, (३) हृदयं- (५) सुलक्षणा : शनि ग्रह सबसे सुन्दर है। गम, (४) रूपमाली, (५) किन्नर-किन्नर, (६) (रिंग्स आफ सटर्न ) शनि की अँगुलिका सभी ग्रहों अनिन्दित, (७) मनोरम, (८) किन्नरोत्तम, (९) रति- से सुन्दर दिखाई देती है। अतएव श्लिष्ट शब्द का प्रिय एवं (१०) ज्येष्ठ (ति० सा० : २५७-२५८)। प्रयोग किया गया है। पाद-टिप्पणी:
पाद-टिप्पणी: ____ कलकत्ता के 'तु' के स्थान पर बम्बई का 'यो' पाठ-बम्बई । रखा गया है।
९. (१) पञ्चकल्याण : घोड़ों की एक नश्ल ८. (१) प्रवाल : पंच ताराग्रह ( मंगल, होती है। उनके चारों पैरों का निचला हिस्सा खुर बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि ) पंचभूत के 'प्रतीक से ऊपर तथा एड़ी के नीचे तथा मुख पर सिर से