________________
१ : ७ : २०-२५ ]
श्रीवरकृता
भिक्षुकानन्यदेशीयान्
प्रेतरूपानिवागतान् ।
दृष्ट्वा पृच्छन्नृपस्ते च वार्तां तस्याब्रुवन्निमति ॥ २० ॥
२०. प्रेतरूप आये, अन्य देशीय भिक्षु को देखकर, राजा ने उनसे पूछा और उन्होंने यह बात कही
राजन् देशेष्वनेकेषु वृष्टयभावात् समन्ततः ।
सर्वान्तकृत् काल इव दुष्कालः समुपस्थितः || २१ ॥
२१. 'हे राजन् ! अनेक देशों में वृष्टि के अभाव से, चारों ओर सबका अन्तकारी काल सदृश दुष्काल, उपस्थित हुआ है।
दुर्भिक्षेण प्रभवता मणीनां सा महार्घता |
नीता नीचेन साधूनामिव सर्वोपयोगिनाम् ।। २२ ।।
२२. 'उत्पन्न दुर्भिक्ष ने मणियों की (उस) महार्घता को, उसी प्रकार हर लिया, सर्वोपयोगी साधुओं के महत्व को नीच ।
भुञ्जते
श्वादयोऽन्योन्यं पिशितं तत्तच्छून्यगृहान्तःस्थनिःशेषितशवत्रजाः
क्षुदुपद्रुताः ।
स्पृष्टोच्छिष्टतया दृष्टप्रायश्चित्तादिनिष्ठिताः । क्षुधा द्विजवरा देव प्रयाताः
॥ २३ ॥
२३. 'भूख से पीड़ित कुत्ते आदि शून्य गृह स्थित, शव समूहों को, निःशेष कर, एक दूसरे का मांस खाने लगे ।
१९१
सर्वभक्ष्यताम् ॥ २४ ॥
कापि
विप्रस्त्रियस्तत्तदभक्ष्यान्वीक्षणाक्षमाः ।
पक्वान्नं सविषं भुक्त्वा स्वमन्यांश्च व्यसून् व्यधुः ।। २५ ।।
पाद-टिप्पणी :
२०. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ५४६ वीं पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का २०वाँ श्लोक है ।
२४. 'हे राजन ! स्पर्श एवं जूठन ( उच्छिष्टता) के कारण, जिनको प्रायश्चित्तादि करते देखा गया था, वे द्विजश्रेष्ठ, सर्वभक्षी बन गये ।
जिस प्रकार
२५. कहीं पर तत्तत् भक्ष्य (पदार्थ) को देखने में अक्षम होकर, विप्र स्त्रियाँ ने सविष पका अन्न खाकर, अपनी तथा अन्यों को प्राण रहित कर दिया ।
पाद-टिप्पणी :
२२. पाठ - बम्बई । पाद-टिप्पणी :
२३. पाठ - बम्बई ।