________________
१८९
१:७: १२-१५]
श्रीवरकृता दीर्घपुच्छोच्छलत्कान्तितत्केतुकपटाद् ध्रुवम् । __ कालेन द्रुघणं क्षिप्तं क्षयायेव महीक्षिताम् ॥ १२ ॥
१२ दीर्घ पुच्छ से निकलते, कान्ति रूप उसके केतु पट के व्याज से, निश्चय ही काल' ने राजाओं के विनाश के लिये, मानो द्रुधण' (कुल्हाड़ी) फेक दिया था।
मासद्वयं स्फुरन्नासीत् स व्योम्नि विमले सदा ।
सदये हृदये राज्ञश्चिन्तौघोऽनिष्टशङ्कया ॥ १३ ॥ १३ दो मास तक वह निरन्तर विमल आकाश में तथा अनिष्ट की शंका से चिन्ता का समूह राजा के सदय हृदय में, स्फुरित होता रहा।
अदृश्यन्त सदा श्वानो विक्रोशन्तः पुरान्तरे ।
शुचेव रुदिताक्रन्दा भाविविघ्नेक्षणादिव ॥ १४ ॥ १४ नगर में श्वान भावी विघ्न को देखने के कारण, शोक से सदैव रोदन, क्रन्दन युक्त तथा चीत्कार करते हुए, दिखायी देते थे।
एकपक्षेऽभवच्चन्द्रसूर्यग्रहणसंस्थितिः
एकपक्षमिवादातुं राज्यं राजविपर्ययात् ।। १५ ॥ १५. राज्य विपर्यय के कारण, एकपक्षीय राज्य ग्रहण करने के लिये ही, मानों एक ही पक्ष में चन्द्र एवं सूर्यग्रहणों की स्थिति हई।
है। बहुधा रात्रि के पूर्व या परयाम मे उदय दिखाई पडता रहा। इसके पश्चात् ही राज्य में हुआ करता है। उसके उदय होने से जनक्षय, दुर्व्यवस्था फैल गयी थी और कालान्तर मे सुल्तान राजक्षय ( राज्य परिवर्तन ) होते है । साथ ही का ही देहावसान हो गया। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सप्त इष्टियों का भी भय होता पाद-टिप्पणी : है। धूमकेतु की प्रचुर उपमा संस्कृत साहित्य में
१२. ( १ ) काल : यमराज । मिलती है--धूमकेतुमिव किमपि करालम् (गीत०१)
(२) दुर्घण · गदा, कुठार, कुल्हाणी तथा कोयस्य नंदकुलं कानन धूमकेतोः ( मुद्रा० : १:
ब्रह्मा का एक विशेषण भी है। १०)।
पाद-टिप्पणी : फारसी इतिहासकारो ने खुरासान के राजा
१५. ( १ ग्रहण : सूर्यग्रहण अमावस्या तथा बाबर के समय सन् १४५६ ई० में धूमकेतु उदय
चन्द्रग्रहण सर्वदा पूर्णिमा को लगता है। वर्ष में कम का वर्णन किया है कि उसके पश्चात् ही सन् १४५७
से कम दो तथा अधिक से अधिक ७ बार ग्रहण लगते में सुल्तान दिवंगत हो गया। मुसलमानों मे धूमकेतु
है। सूर्यग्रहणों की संख्या चन्द्र ग्रहण से अधिक होती का प्रकट होना अशुभ माना गया है ।
है। तीन चन्द्र ग्रहण पर चार सूर्यग्रहण लगते है । अकबर के समय नवम्बर मास सन् १५७५ ई० जिस वर्ष दो ही ग्रहण होंगे, उस वर्ष सूर्यग्रहण ही में उत्तर-पूर्व दिशा में सायंकाल दो घंटों तक धूमकेतु होगा। चन्द्रमा जिस समय सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य