Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 296
________________ जैनराजतरंगिणी [१:६:१८-२० चिन्नवर्णाल्लंसत्पक्षलक्ष्यशोभान् महीपतेः। पक्षिणो मुचुकुन्दाख्यान् प्राहिणोदक्षिसुन्दरान् ।। १८ ॥ १८. चित्र वर्णवाले सुन्दर पक्षों से शोभित, सुन्दर आँखवाले मुचुकुन्द' नाम के पक्षियों को राजा के लिये भेजा। जिघांसया चरन् सोऽपि भूपतेः प्राकृतैर्गुणैः । बद्धो हिंस्रोऽपि डिल्लेशो बल्लूको रल्लकोपमः ॥ १९ ॥ १९. हिंसा की इच्छा से विचरणशील दिल्लीपति वल्लूक, हिंसक होते भी, हरिण सदृश राजा के सहज गुणों से बँध गया। कच्चिच्छीराजहंसस्य राजहंसयुगं ददौ । अन्ये हंसा यदुत्पन्ना राजहंसमरञ्जयन् ॥ २० ॥ २०. किसी ने राजा को युगल राजहंस' प्रदान किया, उससे उत्पन्न होकर, अन्य हंसों, ने राजा को प्रसन्न किया। पाद-टिप्पणी . २०. (१) राजहंस : पीर हसन लिखता है प्रथम पाद के द्वितीय चरण का पाठ सन्दिग्ध है। 'लासा' के वली ने दो खुशरंग अजीब-व-गरीब १८. (१) मचकुन्द . एक पक्षी जिसकी परिन्दे जिनका नाम राजहंस था, तालाब मानसर आँखें अत्यन्त सुन्दर होती है। मुचकुन्द वृक्ष का के कोहिस्तान से पकड़ कर बतौर तुहफा सुल्तान की भी नाम है। खिदमत में भेजे थ–कहते है, सुल्तान के सामने यह दोनों जानवर मिले हुए दूध और पानी को अलगपाद-टिप्पणी: अलग करके, छोड़ देते थे। चोंच से दूध के अजजा १९ (१) वल्लक : बहलोल लोदी ( सन् पानी से अलग करते थे और इस तरह खालिस पानी १४५०-१४८८ई०)। पीर हसन नाम वहलोल लोदी हो जाता था ( पृष्ठ १८१-१८२ )। देता है ( पृ० : १८१ )। आइने अकबरी के अनु तवक्काते अकबरी में उल्लेख मिलता हैसार वल्लूक ही बहलोल लोदी है। उसमे उल्लेख मिलता है कि वहलोल लोदी के साथ सुल्तान की 'तिब्बत के राजा ने दो सुन्दर पक्षी जो हिन्दुस्तानी भापा में हंस कहे जाते थे, मानसरोवर नामक स्थान मित्रता थी ( पृ० : ४३९ ) । तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है-सुल्तान बहलोल लोदी ने अपने देश की से जहाँ के जल में किसी प्रकार का परिवर्तन नही होता सुल्तान की सेवा मे भेजा । सुल्तान उन पक्षियों उत्तम वस्तुएँ उपहार में भेजी (४४०-६५९ )। को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ । उन पक्षियों की द्र० : ३ : १११; आइने अकबरी : २ : ३८९ ।। एक विशेषता थी। यदि जल मिश्रित दूध उनके पाद-टिप्पणी: सामने रखा जाता था, तो वे दूध को अपनी चोंच से उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ५१४ वी जल से पृथक कर, पी जाते थे और जल छोड़ पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का २०वा श्लोक है। देते थे (६६०)। श्रीवर हंस दाता का नाम नही प्रथम पाद के प्रथम चरण का पाद सन्दिग्ध है। देता। तवक्काते अकबरी ने इस पर प्रकाश डाला

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