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१ : ६ : २७-३० ]
श्रीवरकृता
अनल्पाः शिल्पिनः कल्पवृक्षकल्पममुं न के ।
भृङ्गा
२७. कल्पवृक्ष उस राजा के समीप भृंगों के समान, दूर-दूर से सुन्दर शिल्प रचना करनेवाले कौन शिल्पी नहीं आये ?
इवाययुर्दू राच्छिल्पकल्पितकल्पनाः ।। २७ ।।
काश्मीरका
अथास्यस्य तुरीवेमादिचातुरीम् ।
कौशेयकं वयन्त्यद्य बहुमूल्यं मनोहरम् ॥ २८ ॥
२८. आज काश्मीरी लोग तुरी' - वेमा' का अभ्यास कर, बहुमूल्य एवं मनोहर कौशेय वस्त्र
बिनते हैं ।
और्णाः सोफादयो वस्त्रविशेषा दूरदेशजाः ।
काश्मीरकारच भान्त्यद्य समर्थास्ते नृपोचिताः ।। २९ ।।
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२९. दूरदेशोत्पन्न तथा काश्मीर के मजबूत नृपोचित ऊनी सोफा आदि वस्त्र विशेष आज (यहाँ) शोभित हो रहे हैं ।
विचित्रवयनोत्पन्ननानाचित्रलताकृतीः
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दृष्ट्वा चित्रकरा येषु जाताश्चित्रार्पिता इव ॥ ३० ॥
३०. विचित्र प्रकार की बुनाई से बननेवाली, नाना प्रकार की चित्र, लता एवं आकृतियों को देखकर, चित्रकारी चित्रर्पित सदृश लग रही थी ।
हिस्ट्री में मक्का के शासक का नाम नही, केवल मक्का का शरीफ लिखा गया है (३ : ३८२; तवक्काते० : ३ : ४४० ) ।
(३) आदि पीर हसन एक नाम शाम का और देता है ( पृ० १८१ ) ।
नवादरुल अखबार में उल्लेख मिलता है कि शाहरुख ( सन् १४०४ - १४४७ ई० ) जो तैमूरलंग का पुत्र था । उसने जैनुल आबदीन को हाथी तथा रत्न भेंट किया था । किन्तु उत्तर मे लिख भेजा कि उसे प्रसन्नता होती यदि शाहरुख विद्वानों तथा पुस्तकों को रत्नों के स्थान भेजता ( पाण्डु० : ४६ बी०, ४७ ए० तथा गौहरे आलम पाण्डु० : १२६ बी० ) ।
द्रष्टव्य : म्युनिख पाण्डु० : ७३ ए० तथा तवक्काते अकबरी : ( ४४० - ६५९ ) तवक्काते अकबरी में 'आदि' के लिये 'असपान' तथा 'अशपाए'
पाण्डुलिपि में लिखा है । तवक्काते अकबरी मे और लिथो व मसरुख 'एके वाव' कसीदा तथा पाण्डुलिपि मे व 'मसरुख कसीदा' लिखा मिलता है । पाद-टिप्पणी :
२७. पाठ - बम्बई ।
पाद-टिप्पणी
२८. ( १ ) तुरी : बाने के धागों को साफ करने का एक उपकरण ।
( २ ) वेमा : करघा । — तुरीवेमादिकम् - तर्क ०
नं० १:१२ । पाद-टिप्पणी :
२९. ( १ ) सोफा : यह अरबी शब्द सूफ है जिसका अर्थ एक प्रकार का वस्त्र होता है। बकरी या भेंड़ के ऊन से बनाया जाता है । पाद-टिप्पणी :
३० उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का ५२४ वीं पक्ति तथा बम्बई संस्करण का ३० वाँ श्लोक है ।