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१८६ जैनराजतरंगिणी
[१:७:३-५ विंशप्रस्थाभिधे स्थाने कदाचिद् यवनोत्सवे ।
तं द्रष्टुमगमद् राजा परिवारविभूषितः ॥ ३ ॥ ३. किसी समय विशप्रस्थ' नामक स्थान में यवनोत्सव के अवसर पर, उसे देखने के लिये परिवार विभूषित राजा आया।
धनुदण्डशतायामान्तरस्थान् दीर्घरज्जुभिः ।
उच्चान् स्तम्भानबध्नात् स स्वशिल्पप्रथनोद्यतः ॥ ४ ॥ ४. अपना शिल्प दिखाने के लिये उद्यत, वह सौ धनुर्दण्ड को दूरी पर स्थित, ऊँचे खम्भों को बड़ी रस्सियों से बाँध दिया।
अभवन्कलुषास्ते ये नागा रज्जुपुरादिषु ।
भाविस्वभक्तभूपालदेहानिष्टेक्षणादिव ॥५॥ ५. रज्जुपुर आदि में जो नाग थे, भावी अपने भक्त भूपालों के देह का अनिष्ट देखने से ही, मानों कलुषित हो गये।
पर खड़े चलकर, कूद और बैठकर तमाशा करते है। लिथो संस्करण में तनाव वाजान' दिया गया है । नट सभी मुसलमान हो गये है। मुसलिम धर्म ग्रहण एक पाण्डलिपि में 'नतवहहा' दूसरी में 'नतवहा'
क्षत्रिया में का दिया गया है। यह संस्कृत शब्द 'नट' का ही जाती थी। उत्तर प्रदेश मे बाँस पर आधारित फारसी रूप है। रस्सियों पर चढकर चलते है। खेल करते हैं। पाद-टिप्पणी : अनेक प्रकार की कसरत करते है । बंगाल मे इस उक्त इलोक कलकत्ता संस्करण की ५२९वी जाति के लोग गाने-बजाने का पेशा करते है । रस्सी पंक्ति है। पर खेल करनेवाला नट हाथ मे डण्डा लिए चलता द्वितीय चरण का पाठ सन्दिग्ध है। है। रस्सी दो बाँसों की कैची बनाकर दोनो तरफ ३. (१) विशप्रस्थ : बहारिस्तान शाही के लगा दी जाती है। उस पर मोटी रस्सी तान दी लेखक ने विशप्रस्थ को श्रीनगर का मैदान ईदगाह जाती है। रस्सी का दोनों सिरा झूटों से बाँध माना है। द्रष्टव्य : १ . ७ : ३; श्री० : ४ : ९७, दिया जाता है। भूमि पर बैठकर, नटिनी या नट १९१.६३८ । ढोल बजाकर गाता है। खेल के सम्बन्ध में बाते
(२) यवनोत्सव : सम्भवतः ईद का पर्व था। बताता है, पैसा मांगता है। बिहार, उत्तर प्रदेश
पाद-टिप्पणी :
. आदि स्थानों पर मेले में इस प्रकार के प्रदर्शन
४. कलकत्ता संस्करण के श्लोक की ५३०वी साधारण बात है। श्रीवर के वर्णन तथा आजकल
पंक्ति है। के खेल में कुछ अन्तर नहीं मालूम पड़ता।
पाद-टिप्पणी: तवक्काते अकबरी की पाण्डुलिपि में रस्सी पर कलकत्ता के श्लोक की ५३१वी पंक्ति है। चलने वाले को 'रेसमान वाजान' तथा फिरिस्ता के
५. (१) रज्जुपुर : रजोल गाँव ।