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श्रीवरकृता
वस्त्रं नारीकुञ्जराख्यं कुम्भराणो अहरदि
१६ १३-१४]
१३. राणा कुम्भ' ने नारी कुंजर हृदय के कौतूहल को दूर किया ।
राजा
विसर्जयन् ।
तदेशनारीकुञ्जरकौतुकम् ॥ १३ ॥
नामक वस्त्र भेजकर, उस देश के, उत्तम स्त्रियों के,
डुगरसेहाख्यो गीततालकलावाद्यनाव्यलक्षणलक्षितम्
१४. गोपालपुर के राजा दूगरसोह ने गीत, ताल, कला, वाद्य, लास्य,
पाद-टिप्पणी
१३. (१) कुम्भ राणा : मेवाड के राणा कुम्भ के पिता राणा मुकुल थे। पिता के पश्चात कुम्भ सन् १४१९ ई० मे मेवाड के सिहासन पर बैठे । अपने पराक्रम से मेवाड की सीमा दृषद्वती नदी तक पहुँचा दिया था । मालवा के राजा महमूद ने राणा कुम्भ पर आक्रमण किया किन्तु उसे परास्त होना पडा । महमूद छ. मास तक मेवाड में बन्दी बना रहा । दिल्लीपति के आक्रमण के समय महमूद ने राणा कुम्भ की सहायता किया था। चित्तौर का विजयस्तम्भ उनकी अमर कीर्ति है। राणा ने ५० वर्ष शासन किया | अपने पुत्र उडा द्वारा कुम्भलगढ़ में मार डाले गये थे। मैंने यह स्थान देखा है वह एक सरोवर के तटपर है।
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राणा कुम्भ में 'संगीतराज' नामक संगीत पर एक बृहद् ग्रन्थ लिखा था । इसका प्रथम भाग हिन्दू विश्वविद्यालय से सन् १९६४ ई० में प्रकाशित हुआ है । द्वितीय भाग प्रकाशित हो रहा है ।
महाराणा कुम्भ ने जयदेव के गीतगोविन्द पर 'रसिकप्रिया' नाम की एक बहुत ही विशद टीका लिखी है। यह ग्रन्थ निर्णयसागर प्रेस बम्बई से प्रकाशित हुआ है। इस समय यह ग्रन्थ बाजार में नहीं मिलता । इसका संस्करण अपेक्षित है । (२) नारी कुञ्जर : वस्त्र का नाम है, परन्तु किस प्रकार का यह वस्त्र होता था, कहना कठिन है । यदि 'नारी चन्दुर' कुञ्जर के स्थान पर पाठ मान जै. रा. २३
गोपालपुरवल्लभः ।
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लक्षणों से युक्त
कर अर्थ किया जाय तो चुन्दरी का अर्थ होगा । राजस्थान तथा मेवाड़ की चुन्दरी रंगों के मिश्रण के कारण सुन्दर होती थी। 'सुन्दरी' पहना कर विवाह करने की प्रथा आज भी प्रचलित है ।
पाट- टिप्पणी:
पाठ-बम्बई ।
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१४. (१) गोपालपुर ग्वालियर। रानी सुगन्धा ने एक गोपालपुर (सन् ९०४-९०६ ई०) की स्थापना की थी । वह वर्तमान गाँव गुरीपुर है । वितस्ता के दक्षिण तट पर है ( रा० : ५ : २४४) । कल्हण ने एक दूसरे गोपालपुर का भी उल्लेख किया है ( रा० ८ १४०१) । यह गोपाल श्रीवर वर्णित : गोपालपुर नहीं हो सकता है दूगरसिंह राजा काश्मीर के बाहर का था कह राजा सुखल यह स्थान काश्मीर के बाहर राजपुरी प्रदेश के के मृत्यु के प्रसंग में गोपालपुर का वर्णन करता है। समीप था । क्योकि गोपालपुर मे राजा सुस्सल के मस्तक का दाह संस्कार किया गया था । कल्हण के वर्णन में प्रकट होता है कि गोपालपुर राजौरी के समीप था ।
वर्तमान गोपालपुर दूसरा है। यह वालियर है । ग्वालियर का प्राचीन नाम गोपादि है। इसे गोपगिर भी कहते हैं। शंकराचार्य पर्वत श्रीनगर को भी गोप पर्वत अथवा गोपाद्रि कहते है । म्युनिख पाण्डुलिपि में ग्वालियर नाम दिया गया है ( पाण्डु० : ७३ ०; तवक्काते ० : ३ : ४४० ) ।