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जैनराजतरंगिणी
माण्डव्य गौड भूमीशः खलुच्यो यो महीपतिः । दरन्दामनामवस्त्रैरुपाहितैः ॥ १० ॥
अतूतुषद्
१०, माण्डव्य', गौड' भूमि के राजा खलुच्यों ने दरन्दाम नामक वस्त्र को प्रदान कर ( उसे ) सन्तुष्ट किया ।
इतो स्मै नृपो भव्यं काव्यं कृत्वा स्वभाषया ।
प्राहिणोद् द्रव्यसंयुक्तं सव्यसाच्यग्रजोपमः ॥ ११ ॥
११. युधिष्ठरोपम' राजा ने भी यहाँ से, उसके लिये द्रव्य सहित अपनी भाषा में सुन्दर काव्य लिखकर, प्रेषित किया ।
[१ : ६ : १०-१२
सोऽप्यनर्वैः पदार्थेर्न तथा तुष्टो महीपतिः । भूपकाव्यस्यातिमनोहरैः ॥ १२ ॥
सालङ्कारैर्यथा
कि
१२. वह राजा भी अलंकार सहित बहुमूल्य पदार्थों से उतना नहीं संतुष्ट हुआ, जितना नृपकाव्य के अति मनोहर अलंकारों से ।
दोनों आंखों के बीच होता नाक तक का भाग श्वेत होता है । घोडा में पाँच स्थानों पर घोड़ों के रंगों मुश्की आदि के बीच श्वेत रंग होने के कारण उन्हे पंचकल्याण कहा जाता है । मेरे पास भी पंचकल्याण घोड़ा, मोटर आने के पूर्व था । पंचकल्याण धोड़ा शुभ एवं मांगलिक तथा सुखप्रद माना जाता है। इस घोड़े की कोमत अन्य घोड़ों की अपेक्षा अधिक होती है |
पाद-टिप्पणी :
उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ५०४वी पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का १०वीं श्लोक है ।
१०. ( १० ) माण्डव्य : माण्डू ( मालवा ) । वह मालवा का सुल्तान महमूद प्रथम था ( तवक्काते अकबरी: ४४० - ६५९ ) ।
( २ ) गौड़ : द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : १ : २५ । गौड़ का तात्पर्य बंगाल से है ।
( ३ ) खलच्च : वहाँ इस समय सुल्तान ' रुक
नुद्दीन' ( सन् १४५९ - १४७४ ई० ) था । श्रीवर ने सम्भवयः रुकनुद्दीन के लिये प्रयोग किया है । खलन्च का पाठभेद खलश्यो तथा खलुच्यो मिलता है । बंगाल में मुसलमानों का शासन था । खलच्च नाम मुसलिम नही हो सकता ( क० ४ : ३२३ ) ।
४) दरन्दाम वस्त्र का क्या रूप था, प्रकाश नही पड़ता । अनुसन्धान अपेक्षित है । इसका केवल यही उल्लेख मिलता है ।
पाद-टिप्पणी :
११. ( १ ) युधिष्ठरोपम: धर्मराज पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर तुल्य ।
पाद-टिप्पणी :
१२. कलकत्ता में 'महीपतेः' पाठ दिया गया है, जिससे अर्थ में पुनरुक्ति होती है । अत: 'महीपतिः' पाठ रखने से अर्थ की असंगति दूर हो जाती है ।