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षष्ठः सर्गः ततः क्रमसरस्तुल्यं राजा पद्मपुरान्तरे।
तत्कौतुकापनोदाय चक्रे जैनसरो नवम् ॥ १ ॥ १. तत्पश्चात राजा ने उसका कौतुक दूर करने के लिये, क्रमसर' के तुल्य पद्मपुर में नवीन जैनसर निर्माण कराया।
फुल्लत्कुङ्कुमपुष्पौघश्यामीभूतस्थलच्छलात् ।
शरदीवागता प्रीत्या यमुना यत्सरोवरम् ॥ २ ॥ -. शरद काल में प्रफुल्ल कुमकुम के पुष्पपुंज से, श्यामल भूमि के व्याज से, मानो प्रेम से, यमुना ही उस सरोवर में आ गयी थी।
कुलोद्धरणनागाख्यमण्डिते यत्तटे नवम् ।
राजद्राजगृहं राजा राजराजोपमो व्यधात् ।। ३॥ ३. कुलोद्धरण' नाग-मण्डित तटपर, कुबेर सदृश राजा ने नवीन भव्य राजगृह निर्माण कराया।
उच्चैः पदस्थममलं रुचिरञ्जिताशं
संपूर्णमण्डलखण्डकलाकलापम् राजानमीशमवलोक्य हतोपतापं
काङ्क्षन्ति के न नितरामपि दूरसंस्थाः ।। ४ ॥ ४. उन्नत पद पर स्थित, निर्मल रुचि (कान्ति-इच्छा) दिशा (आशा) को रजित करने वाले, सम्पूर्ण मण्डल (देश) एवं अखण्ड कला-कलाप से पूर्ण, उपताप (ताप) नाशी, स्वामी (ईश) राजा (चन्द्रमा) को देखकर, बहुत दूर स्थित, भी कौन-से लोग नहीं चाहते है ?
पाद-टिप्पणी :
(३) जैनसर : स्थान का अन्वेषण अपेक्षित उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का ४९५ वी है। इसका केवल यही उल्लेख मिलता है। पंक्ति है।
पाद-टिप्पणी : १. (१) क्रमसर : कौसर नाग : द्र० : १ : ३. (१) कुलोद्धरण नाग : हरचरित चिन्ता५ : ९६; ६:१।
मणि में कुलोद्धारणिका का उल्लेख मिलता है (१० : (२) पद्मपुर : पामपुर । द्र० : ४ : १३१; २४७)। विजयेश्वर से उत्तर-पश्चिम लगभग १४ ४ : ३४२; लोक० २०।
मील दूर है।