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जैनराजतरंगिणी
[१:५: ९७ ब्रह्माच्युतेशगिरयः पतत्तोयरवच्छलात् ।।
अकुर्वन् कुशलप्रश्नं हरांशजमहीभुजे ॥ ९७ ॥ ९७. गिरते हुये, जलधारा के शब्द व्याज से, ब्रह्म, अच्युतेश२, शिव के अशभूत राजा से कुशल प्रश्न किये।
पर्वत के मूल उत्तर-पश्चिम दिशा में एक पर्वतीय यम, वरुण, अग्नि, कुबेर, पृथ्वी एवं विष्णु का कार्य दो मील लम्बी झील है। इसका पुराना नाम क्रम- करता है अतएव राजा में उनके अंश है। वायुसर अथवा क्रमसार है। (नील० १२३, १७६, पुराण (५७: ७२) का मत है कि अतीत एवं १८०, १२६९, १२७०, १२७८; नौबन्धन भविष्य के मन्वन्तरों में चक्रवर्ती राजा उत्पन्न हुये माहात्म्य; सर्वावतार : ३ १०; रा० : ५ : १७४)। और होंगे उनमें विष्णु का अंश होगा। शान्तिपर्व विष्णुपद-सर को क्रमसर कहा गया है। क्रम का (३ : ६७ ) में राजा के उत्पत्ति के विषय में अर्थ पदार्पण होता है। नौबन्धन आरोहण हेतु भग- गाथा दी गयी है-लोग ब्रह्मा के पास गये। उनसे वान का यही प्रथम पद पड़ा था। क्रमसर विशोका एक शासक के नियुक्ति की प्रार्थना की। ब्रह्मा ने नदी का उद्गम है (द्र० १ : ६ : १)। मनु को नियुक्त किया। रामायण में उल्लेख मिलता (२) विष्णुपाद मुद्रा . विष्णपद = भगवान है कि ब्रह्मा ने राजा को बनाया। नारदस्मति में
लिखा गया है-प्रकृति पर स्वयं इन्द्र राजा के रूप विष्णु तथा भगवान बुद्ध की पादमुद्रा अर्थात पाद चिह्न बनाने की प्रथा प्रचलित है। काश्मीर मे भी
मे विचरण करता है (प्रकीर्णक : २०, २२, २६, विष्णु की पाद मुद्रा बनी थी। पादमुद्रायें या चिह्न
५२)। भागवतपुराण में महादेव का अंश भी जोड दो प्रकार के बनते है। एक सादा होता है तथा दिया गया है -विष्णु, ब्रह्मा, महादेव, इन्द्र, वायु, दूसरे में फलित ज्योतिष के अनेक चिह्न बने रहते है। यम, सूर्य, मेघ, कुबेर, चन्द्रमा, पृथ्वी, अग्नि और नौबन्धन आरोहण के पूर्ण भगवान विष्णु का क्रम
वरुण और इसके अतिरिक्त, जो दूसरे वर और शाप अर्थात जहाँ प्रथम पद पडा था, वहीं पर भगवान का
देनेवाले देवता है, वे सब राजा के शरीर मे निवास चरण चिह्न अथवा विष्णुपद बना दिया गया था।
करते है अतएव देवता सर्वदेवमय है (भा० : ४: वह नौबन्धन तीर्थयात्रा का एक भाग था।
१४ : २६-२७) । प्रारम्भिक वैदिक काल में देवत्व
की कल्पना नही की गयी थी। पाद-टिप्पणी:
(२) अच्युत : अपने स्वरूप से न गिरनेवाला, ९७. (१) ब्रह्मा : पुरातन सिद्धान्त है कि दढ. स्थिर, निर्विकार, अविनाशी, अमर, अचल, राजा देव का अंश है। मनु का मत है-'विधाता ने शाब्दिक अर्थ होता है। विष्णु तथा उनके अवतारों इन्द्र, मरुत, यम, सूर्य, अग्नि, वरुण, चन्द्र एवं का नाम है। वासुदेव श्रीकृष्ण का विशेषण है। कुबेर के प्रमुख अंशों से युक्त राजा की रचना की है'
जैनियों के अनुसार कल्पवासी देवताओं का एक भेद (मनु० . ७ : ४-५; ६ : ९६) मनुष्य नर रूप में तथा उनका स्थान है। कल्प स्वर्गों में सोलहावाँ स्वर्ग देवता है (मनु० :७:८; शान्ति० : ६८ : ४० है। अच्यत कुल वैष्णवों का एक समाज एवं उनकी आपस्तम्ब०:१: ११ : ३१ : ५; मत्स्यपुराण : कुल परम्परा है। वे विशेषतया रामानन्द सम्प्रदाय २२६ :१; शुक्रनीति : १:७१-७२। अग्निपुराण के होते है। वे अपने को अच्युतकुल या अच्युतगोत्रीय में (२२६ : १७-२०) राजा, सूर्य, चन्द्र, वायु, मानते है ।