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१:५:९८-१००] श्रीवरकृता
१६९ कस्तूरीकुसुमश्यामां कोष्ठागारावनि गिरेः ।
दृष्ट्वा तुष्टो नृपश्रेष्ठो योगीवेष्टां हरेस्तनुम् ॥ ९८ ॥ ९८. कस्तूरी, कुसुम, श्यामल पर्वत की कोष्टागार भूमि को देखकर, नृपश्रेष्ठ राजा उसी प्रकार तुष्ट हुआ, जिस प्रकार योगी कस्तूरी-कुसुम-श्यामल' हरि के शरीर को देखकर ।
अथ नौकां समारुह्य धीवरैः पञ्चषैर्वृताम् ।
धृत्वा मां सिंहभद्रं च चचार सरसोऽन्तरे ॥ ९९ ॥ ९९. धीवरों से युक्त नौका पर, आरूढ़ होकर, और मुझे तथा सिंह भट्ट को लेकर, सरोवर के अन्दर विचरण किया।
गीतगोविन्दगीतानि मत्तः श्रुतवतः प्रभोः।
गोविन्दभक्तिसंसिक्तो रसः कोऽप्युदभूत् तदा ॥ १० ॥ १००. उस समय मुझसे गीतगोविन्द' के गीतों को सुनकर, राजा को गोविन्द भक्ति से पूर्ण, कोई अपूर्व रस पैदा हुआ। पाद-टिप्पणी :
(२) सिंहभट्ट : द्र० ४ : ४३ । प्रथम पाद के द्वितीय चरण का पाठ
(३) सरोवर : क्रमसर । संन्दिग्ध है।
पाद-टिप्पणी: ९८. (१) श्यामल : भगवान कृष्ण के वर्ण
१००. (१) गीतगोविन्द : गीतगोविन्द की कल्पना श्याम वर्ण से की गयी है। श्याम वट- संस्कृत के सरस, ललित एवं मधुर काव्य का जीतावृक्ष का नाम है। वटपत्र पर भगवान प्रलय काल
जागता रूप है। उस जैसा, पद-लालित्य विश्व की में विश्राम करते है। प्रयाग संगम पर स्थित वट किसी भाषा में नही मिलेगा। संस्कृत न जाननेको श्याम की संज्ञा दी गयी है। (भाग०)-अयं वाले भी केवल उसका पठन किंवा सरस उच्चारण च कालिन्दी तटे वट: श्यामो नाम । (उत्तर० १) सूनकर झूम उठते है। सोऽयं वटः श्याय इति प्रतीतः (रघु० १३ : ५३)।
गीतगोविन्दकार महाकवि जयदेव थे। उनके शिव का एक विशेषण है।
पिता का नाम भोजदेव एवं माता का राधा अथवा पाद-टिप्पणी:
रामा था। जन्म स्थान केंदुबिल्व' वर्तमान केंदुली ९९. (१) धीवर : मछुवा - मल्लाह = माझी स्थान था, जहाँ आज भी मेला लगता है और गीतहाँजी। भर्तृहरि (२ : ६१) धीवरों के विषय में गोविन्द के पदों का सरस गायन होता है। उनका लिखते है-मृग मीन सज्जनानां तृण जल संतोष जन्म बारहवीं शती में हुआ था। बंगाल के अन्तिम विहित वृत्तीनां, लुब्धक धीवर पिशुना निष्कारण हिन्द राजा लक्ष्मण सेन के सभा-कविरत्नों में सर्ववैरिणो जगति-धीवर का एक राज्य के रूप में भी श्रेष्ठ थे। इस काल मे श्रीकृष्ण आदर्श नायक एवं उल्लेख महाभारत में मिलता है (ब्रह्मा० २ : १८: राधा आदर्श नायिका थी। इसमें आध्यात्मिक ५४; मत्स्य० १३१ : ५३; वायु० : ४७ : ५१;,६३ : रहस्यवाद की अभिव्यक्ति अपने समय के परम १२३)।
संगीतज्ञ एवं संगीत-शास्त्र-विशारद राणा कुम्भ जै. रा. २२