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१ : ५ : ८८-९१ ]
श्रीवरकृता नौबन्धनगिरेर्यात्रामाकर्ष्यादिपुराणतः ।
तीर्थयात्रोत्सुकं राज्ञः कदाचिदभवन्मनः ॥ ८८ ।।
८८. किसी समय आदिपुराण' से नवबन्धन गिरि की यात्रा वर्णन सुनकर, राजा का मन तीर्थयात्रा के प्रति उत्सुक हो गया।
एकोनचत्वारिंशेऽब्दे पितृपक्षान्त्यवासरे।
यात्रादिदृक्षया भूपो जगाम विजयेश्वरम् ।। ८९ ॥ ८९. उनतालीसवे वर्ष पितपक्ष के अन्तिम दिन यात्रा देखने की इच्छा से राजा विजयेश्वर गया।
नानावर्णांशुकच्छन्नः प्रेक्षकैः परिपूरितम् ।
पुष्पाकीर्णमिवोद्यानमद्राक्षीद् रङ्गमण्डलम् ॥ ९ ॥ ९०. नाना रंग के परिधान पहने, प्रेक्षकों से परिपूर्ण, रंगमण्डल को उसी प्रकार देखा जैसे पुष्पपूर्ण उद्यान।
यत्र बान्दरपालाद्या राजानो वीक्ष्य सबलाः ।
तद्वर्षे दर्शनायाता हर्षमन्वभवन्निति ॥ ९१ ।। ९१ उस वर्ष जहाँ दर्शन के लिये आये हुये, सेना सहित बान्दरपाल' आदि राजा (रंगमण्डप) देखकर, हर्षित हुये। पाद-टिप्पणी :
१४७३ ई० ) तथा चन्द्रकीति ( सन् १५९७ ई०) ८८. (१) आदिपुराण : आधनिक विद्वानों ने भी आदिपुराण की रचना की थी। ने आदिपुराण का काल सन् १२०३-१२२५ ई०
(२) नवबन्धन : द्र० नील० : १६७; हर० रखा है। इसका अर्थ है कि आदिपुराण कल्हण ।
. ४ : २७; सर्वावतार० ३ : ४ . १२, ३ : १०, ५ : ( सन् ११४८-४९ ई० ) के पश्चात् की रचना है।
१४७, ५ : ४३, नौबन्धन माहात्म्य, वनपर्व १८७ :
५०। श्रीवर के रचनाकाल के समय (सन् १४५९-१४८६
पाद-टिप्पणी: ई०) मे यह पुस्तक काश्मीर में उपलब्ध थी। आदि
८९. (१) उनतालीसवें वर्ष : ४५३९ सप्तर्षि पुराण से अर्थ ही है कि यह पुराण था। यह कोई
___ = सन् १४६३ ई० = विक्रमी संवत् १५२० = शक नवीन रचना केवल दो शताब्दि पूर्व की नही थी। संवत १३८५ । कलि गताब्द ४५६४ वर्ष । आदिपुराण को कुछ विद्वान ब्रह्मपुराण मानते है। पाट-टिप्पणी : दूसरा मत है कि इसका तात्पर्य काश्मीर के लौकिक
पाठ-बम्बई। पुराण नीलमत से है। जैन ग्रन्थों के अनुसार जिन- ९०. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ४७६ सेन ( सन् ८०१-८४३ ई०) ने आदिएराण की वी पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का ९०वा श्लोक है। रचना की थी। मल्लिषेण ( सन् ११२८ ईए) ने पाद-टिप्पणी : आदिपुराण रचा था। सकलकीर्ति ( सन् १४३३- ९१. (१) बान्दरपाल : शोध अपेक्षित है।