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१.५:५८ ]
श्रीवरकृत
मत्पितृप्रमये राजा विज्ञप्तः स
मयैकदा ॥
दण्डयित्वा किरातांस्ताञ शवशुल्कं न्यवारयत् ।। ५८ ।।
५८. एक समय अपने पिता की मृत्यु पर मैंने राजा से (शुल्क की बात कही, तो उसने उन किरातों' को दण्ड देकर, शव-शुल्क निवारित कर दिया ।
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लोग पावदाह करने पर आपत्ति करते थे। जैनुल में चित्रित किया गया है। रामायण में किरातों का आबदीन ने यह कर उठा दिया था।
वर्णन मिलता है। रामायण मे किरात नारियों के तीक्ष्ण जूड़ों का वर्णन किया गया है। उनका रंग सुवर्ण की तरह कहा गया है ( बा० कि० : ४० : २७ ) । महाभारत में उन्हें म्लेच्छ तथा पर्वतीय एवं हिमालय पर्वतवासी बताया गया है (कर्ण०७३ १९-२० द्रोण० ४ ७ सभा० २६) प्रागज्योतिषपुर : : । के समीप अर्जुन तथा किरातो में युद्ध हुआ था ( सभा० : ५२. ९-१२ ) । वे फल-फूलभोजी, चर्मवस्त्रपारी, भयानक अस्त्र चलानेवाले तथा क्रूरकर्मा कहे गये है । खारवेल के अभिलेख में चीन एव किरात का एक साथ उल्लेख है । इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने उन्हें मगोल जातीय होने की सम्भा वना प्रकट की है। कुमारसम्भव मे कालिदास ने उन्हें हिमालय मे देवदार वृक्षों के मध्य मृगो को खोजते चित्रित किया है। सांची के स्तूप पर एक किरात भिक्षु के दान का चित्र है। इसी प्रकार नागार्जुनी कोटा में एक अभिलेख में किराती का उल्लेख है । मनुस्मृति में उनकी व्रात्य क्षत्रियों मे गणना की गयी है ( १० : ४३ - ४४ ) । तुलसीदास ने भी रामायण में किरात जाति का उल्लेख किया है— मिलहि किरात कोल बनवासी । वैषानस, हो उदासी । मध्ययुग तक किरायों को जंगली अथवा बनवासी माना जाता था। उनकी गणना कोल आदि जंगली जातियों के साथ की गयी थी । यहाँ पर श्रीवर ने किरात शब्द उन डोमों के लिए विशेषण रूप में प्रयोग किया है, जो बनवासी तुल्य निम्न कोटि के थे ।
वटु,
पाद-टिप्पणी :
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५८ (१) किरात हिमालय निवासी मूलतः एक जाति है, जो कालान्तर मे आसाम तथा विन्ध्य पर्वत तक फैल गयी थी। किराती जति से किरात जाति को सम्बन्धित करने का कुछ विद्वानों ने प्रयास किया है, जिन्होंने नेपाल के एक भाग पर शासन किया था किरात देश एक समय सप्तकुण्ड से रामक्षेत्र तक फैला बताया गया है । तप्तकुण्ड को राजगृह तथा मुंगेर समीपस्थ विहार का तप्तकुंड मानते है। रामक्षेत्र को रामटेक या रामगिरि होने का अनुमान लगाया गया है। यहाँ पर किरात कुछ विन्ध्याचल पर्वतीय जातियाँ मानी गयी है। कालान्तर मे किरात शब्द पर्वतीय, असभ्य अपना अर्थ सभ्य एवं अनार्य जाति के लिए रूढ हो गया था ( शक्तिसंगम तन्त्र ३ : ७ : २९) । किरातों का वर्णन, कम्बोज तथा काश्मीरियों के साथ महाभारत तथा पुराणों में किया गया है। महाभारत में किरात को एक भारतीय जनपद माना गया है ( भीष्म० : २ : ५१-५७) । बृहत् संहिता ने भी किरातों के देश का उल्लेख किया है। उससे प्रकट होता है कि काश्मीर की सीमा अथवा काश्मीर मे अथवा भारत के उत्तर-पश्चिम भागों मे किरात जाति निवास करती थी । किरातों का उद्यम आखेट तथा जंगली औषधि आदि खोदना बताया गया है ( अथर्व ० : १०४ : १४ ) । वाजसेनीयी संहिता (३० : १६ ) तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण में किरातों को गुहा निवासी रूप