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जैनराजतरंगिणी
[ १ : ५ : ५९-६२ ततः प्रभृति तत्स्थाने विमाना नगरान्तरे ।
दह्यन्ते दर्शनद्वेषिम्लेच्छानां हृदयैः समम् ॥ ५९॥ ५९ उसी समय से नगर में उस स्थान पर, दर्शनद्वेषी म्लेच्छों के हृदय के साथ, विमानी (सामान्य) जन जलाये जाते थे।
निरर्गला वयं जाता इतीव शिविकाहकैः ।
छत्रहस्तैः प्रनृत्यन्तो दृश्यन्ते वाद्यनिःस्वनैः ॥ ६० ॥ ६०. 'हमलोग प्रतिबन्ध रहित हो गये'-इसलिये मानों शिविका वाहक हाथ में छत्र लिये वाद्य ध्वनि के साथ नाचते हुए दिखायी दे रहे थे।
दिगन्तरीयया रीत्या यत्र राशाप्यवारिताः ।
प्रियानुगमनं नार्यश्चितामारुह्य कुर्वते ॥ ६१ ॥ ६१. बाह्य देश' की नीति के अनुसार जहाँ पर, नारियाँ चितारोहण कर, प्रिय का अनुगमन करती थीं और राजा उन्हें वारित नही करता था।
अर्थिसंघोपकारार्थं पौराणां सुकृती नृपः ।
विहारं बहुविस्तारं तत्संगमतटे व्यधात् ॥ ६२ ॥ ६२. सुकृती राजा ने उस (मारी), संगम तट पर, पुरवासियों के अथि संघ के उपकार हेतु, बहुत विस्तृत विहार निर्माण कराया।
पाद-टिप्पणी :
जैनुल आबदीन के पुत्र हैदरशाह का शव ले जाने ५९. (१) म्लेच्छ : मुसलमान। मुसलमान ने सिकन्दर बुतशिकन के समय से शवदाह स्मशान में बन्द कर दिया था। शव क्रिया करने वाले डोम्ब ५ आदि मुसलमान हो गये थे अतएव वे भी मृतक कर्म
६१. (१) बाह्य देश : यहाँ भारतवर्ष से नही कराते थे। मुसलमानों ने जब देखा कि जैनुल
अभिप्राय है। आबदीन ने स्मशान में शवदाह की आज्ञा निःशुल्क
(२) सती : सतीप्रथा काश्मीर में प्रचलित
थी। रानी देवी वाक्पुष्टा का अपने पति के साथ दे दी है, तो उनका हृदय जल उठा ।
सती होने का प्रथम उदाहरण काश्मीर में मिलता पाद-टिप्पणी :
है ( रा० ३ : ५६ )। काश्मीर मे पुरुष भी ६०. (१) शिविका : अरथी = शिविका में पत्नी के साथ देहत्याग करते थे। राजा जलौक ने शव ले जाने की प्रथा रामायण काल से है। स्वतः स्वपत्नी सहित शरीर त्याग किया था । मिाहर श्रीवर के इस वर्णन से प्रकट होता है कि काश्मीरी कुल स्वयं चितारोहण किया था। बाह्य देश का शिविका में भी शव ले जाते थे। शव पर छत्र लगाते अनुगमन शब्द से पता चलता है कि सतीप्रथा उन थे। शवयात्रा बाजों के साथ होती थी। शिविका दिनों काश्मीर मे बन्द हो गयी थी। क्योंकि नब्बे का अर्थ अर्थी भी होता है। श्रीवर शिविका में प्रतिशत काश्मीरी मुसलमान हो गये थे और सती