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१ : ५ : ६३-६५]
श्रीवरकृता स च हाज्येविहारश्च पारावारे पुरद्वये । गृहश्रेणिमणिवातनायकश्रियमापतुः ।
अन्याः प्रतिष्ठास्तत्कालं राज्ञा स्वस्थेन कारिताः ॥ ६३ ॥ ६३. नदी के दोनों तट पर, यह तथा हाज्य विहार के गृह श्रेणी रूप मणि समूहों में, नायक मणि की शोभा प्राप्त कर रहे थे। स्वस्थ राजा ने उस समय अन्य भी प्रतिष्ठाएँ करायी ?
श्रीहर्षो नृपतिर्बभूव कविताराज्ये तदा येऽभवन्
सर्वे ते कवयः किमन्यदपि ते सूदाः स्त्रियो भारिकाः । सन्त्यद्यापि कृतानि तैः प्रतिगृहं पद्यानि विद्यानिधी
राजा चेद् गुणवान् गुणेषु रसिको लोको भवेत् तादृशः॥ ६४ ॥ ६४. राजा श्री हर्ष हुआ, उस समय कविता के राज्य में जो लोग थे, वे सब कवि हुये, अधिक क्या कहें? वे रसोइयाँ, स्त्री एवं बोझा ढोनेवाले ही क्यों न रहे है ? आज भी उनके बनाये पद प्रति घर में हैं। राजा यदि गणी एवं विद्यमान एव गणो के प्रति रसिक होता है, तो लोक भी वैसा हो ही जाता है।
छात्रशाला विशालास्ता धर्मार्थं गुणशालिना।
कृता याभ्यः श्रुतः शब्दस्तकव्याकरणोद्भवः ॥ ६५॥ ६५. गुणशाली राजा ने धर्म हेतु, विशाल छात्रशालायें बनवायी, जिनमें तर्क एवं व्याकरण का शब्द सुना जाता था।
प्रथा प्रोत्साहित नहीं की जाती थी ( म्युनिख : पारंगत था । वह राणा कुम्भ के समान वीर के साथ पाण्डु० : ७० ए तथा बहारिस्तान शाही ' पाण्डु० : ही संगीतज्ञ था। वह गीतकार भी था। उसके ४८ बी०; तवक्काते०:३:४३६; फिरिस्ता २: रचित गीत कल्हण के समय तक काश्मीर में गाये ३४२)।
जाते थे। उस समय संस्कृत एवं साहित्य का प्रचार पाद-टिप्पणी
काश्मीर में खूब था। श्रीवर के वर्णन से प्रकट होता ६३. ( १ ) हाज्य विहार : श्रीनगर में था। है कि हर्ष रचित पद हर्ष की मृत्यु एवं मुसलिम राज्य केवल उल्लेख मिलता है।
स्थापित हो जाने पर भी, लोकप्रिय थे। लगभग पाद-टिप्पणी:
चार शताब्दी तक जनता उनके माधुर्य एवं काव्य का ६४. (१) हर्ष : काश्मीर का राजा हर्ष रस लेती रही। जैनुल आबदीन की मृत्यु के पश्चात ( सन् १०८९ से सन् ११०१ ई०) था । वह राजा परशियन का अत्यधिक प्रचार होने के कारण, आज कलश (सन् १०६३-१०८९ ई०) का पुत्र था। कल्हण हर्ष के गीतों का न तो संग्रह मिलता है, न उसकी के शब्दों में हर्ष अति रूपवान, शक्तिशाली युवक कोई रचना प्राप्त है। द्रष्टव्य ( रा० : ७ : ८३९था । साहसी था । कलाप्रेमी था और संगीत कला १७३२ )।