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जैनराजतरंगिणी
[१ : ५ : ७४-७६ निदाघकाले विषमः प्रतापो
दहेद् धरियां तृणगुल्मपूगान् । वन्यो न केषां घनकाल एको
__ यो जीवनस्तान् विततान् करोति ॥ ७४ ॥ ७४. निदाघ काल में विषम प्रताप (ऊष्मा) पृथ्वी पर, तृण-गुल्म-कुंजों को दग्ध कर देता है, एक घन किनके लिये वन्दनीय नहीं है, जो जीवन (जल) दानकर, उनको पुनः वितत (विस्तृत) कर देता है।
शेकन्धरधरानाथो यवनः प्रेरितः पुरा ।
पुस्तकान् सकलान् सर्वांस्तृणान्यग्निरिवादहत् ।। ७५ ॥ ७५ कुछ समय पूर्व, पृथ्वीपति सिकन्दर' ने, यवनों से प्रेरित होकर, समस्त पुस्तकों को, तृणग्नि के समान पूर्ण रूप से जला दिया।
तस्मिन् काले बुधाः सर्वे मौसुलोपद्रवाज्जवात् ।
गृहीत्वा पुस्तकान् सर्वान् ययुर्दू दिगन्तरम् ।। ७६ ॥ ____७६. उस समय मुसलमानों के तेज उपद्रव के कारण, सब विद्वान समस्त पुस्तकें लेकर दिगन्तर' (दूर देशो) में चले गये।
ए०)। कुछ अन्य विद्वानों मे मुल्ला परसा बुखारी प्रतिष्ठा सब लोग करते थे (पृष्ठ : ४३९ )। तथा मैय्यद मुहम्मद मदानी का नाम उल्लेखनीय है
(३) पुस्तक : बहारिस्तान शाही : पाण्डु० : ( बहारिस्तान शाही · पाण्डु० : ४६ बी०)।
४६-४७ में सिकन्दर के पुस्तक नष्ट करने के सन्दर्भ पाद-टिप्पणी :
में लिखा गया है-'सिकन्दर बुतशिकन ने समस्त ७५. (१) सिकन्दर : सिकन्दर बतशिकन । पुस्तकें जलवा दी। सिकन्दर ने शालीमार का काश्मीर के शाहमीर वंश का छठवां सुल्तान था। तालाब हाक परगना में बनवाया था। काश्मीर के उसने सन् १३८९ से १४१३ ई० तक काश्मीर पर समस्त संस्कृत ग्रन्थों से तालाब भर दिया गया। शासन किया था।
वहाँ किताबें टिड्डियों के समान एकत्रित हो गयी (२) यवन = मुसलमान : यवनों का अत्या
थी। तालाब में उन्हे भरने के पश्चात् उन पर मिट्टी
डाल दी गयी ताकि वे सड जायँ।' चार सिकन्दर के समय बढ़ गया था ( जोन० : ५३८-६१३)। जैनुल आबदीन ने अपने पिता की पाद-टिप्पणी : विरोधी नीति सहिष्णुता एवं धर्म निरपेक्षता चलाया। ७६. (१) दिगन्तर : काश्मीर के बाहर आइने अकबरी में भी उल्लेख मिलता है कि जजिया अथवा काश्मीर त्याग से अभिप्राय है। द्रष्टव्य उठा दिया गया। गोहत्या बन्द कर दी गयी। वह टिप्पणी : जैन० . १ : १ : १३९; १ : ३ : ११३; बड़ा गुणी सुल्तान था। उसने धर्म के नाम पर किसी १:७ : १७३ । दिगन्तर का शाब्दिक अर्थ होता का दमन नहीं किया। इसलिये उसका आदर तथा है, दो दिशाओं के मध्य का स्थान ।