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श्रीवरकृता हस्तिकर्णाभिधे क्षेत्रे युक्त्या राज्ञा प्रवेशिता।
सिन्धुसंगमपर्यन्तं निर्मिता शालिनालिनी ॥ ५५॥ ५५. राजा ने युक्तिपूर्वक इसे हस्तिकर्ण' नामक क्षेत्र में प्रविष्ट किया और सिन्धु-संगम' तक इसे शालि नाली युक्त कर दिया।
मृतानां देहदाहेन स्वर्गदो नगरान्तरे ।
स मारीसङ्गम. ख्यातो जातः सङ्गाद् वितस्तया ।। ५६ ॥ ५६. नगर में मृतकों का दाह करने से स्वर्गप्रद, वह मारी सगम', वितस्ता के संग से प्रख्यात हो गया।
इस नहर द्वारा श्रीनगर तथा डल समीपवर्ती ग्रामीण वर्णन किया है। यह स्थान वितस्ता तथा महासरित अंचल से व्यापार आदि होता है । यह नहर शादीपुर के संगम पर एक द्वीप पर था (रा० : ८ : ३३९) । तक बढ़ाकर, संगम में मिला दी गयी थी। इस नहर श्रीवर के वर्णन से प्रकट होता है । उसके समय में भी पर सात पुल बने थे। नहर के दोनों तरफ बाँध टूटे वितस्ता तथा महासरित के संगम पर स्मशान चार मन्दिरों से प्राप्त शिलाखण्डों से बाँध दिया गया था। शताब्दी तक एक स्थान पर पूर्ववत् बना रहा। उसका यह भी जनश्रुति है, नहर का पेटा अर्थात् तल पक्की स्थान परिवर्तन नहीं हुआ था। ईटों आदि से बिछाकर मजबूत बनाया गया था। (२) मारी संगम : वितस्ता महासरित संगम पाद-टिप्पणी :
स्थान । मारी, मर, महासरित एक ही नाम के
पर्याय है । कुछ विद्वानों ने माहुरी नदी को मारी ५५. (१) हस्तिकर्ण : यह स्थान व्याघ्राश्रम
माना है । यह गलत है। माहुरी नदी मच्छीपुर परके समीप था । व्याघ्राश्रम का वर्तमान नाम वागहोम है। दच्छिन पोर परगना मे है। वितस्ता के दक्षिण
गना की मबुर नदी है (नील : १३२०)।
आर्यो मे दाह संस्कार सूदूर पूर्वकाल से प्रचतटपर बहुत दूर नहीं है। यह मरहोम से २ मील
लित है । आर्य जहाँ गये अथवा उपनिवेश बनाये, दक्षिण-पश्चिम है । ग्राम मे एक नाग है। उसे आज
वहाँ उन्होंने दाह संस्कार प्रचलित किया। गाड़ने भी हस्तिकर्ण नाग कहते है। इसका उल्लेख विज
की प्रथा सेमेटिक है। वेवलोन तथा सुमेर में गाड़ने येश्वर, अमरेश्वर माहात्म्य तथा तीर्थों एवं नीलमत
और फूकने की दोनों प्रथायें प्रचलित थी। फूकने के (८८५) में भी उल्लेख मिलता है (रा०:५ :
पश्चात भस्म एक कुम्भ मे रखा जाता था। इस प्रकार २३; द्रष्टव्य सैय्यदअली : तारीखे काश्मीर : ३७) ।
के पात्र ईशा ३ सहस्र वर्ष पूर्व निप्पुर मे मिले (२) सिन्धु संगम : सिन्धु वितस्ता संगम है। आधुनिक सुरघुल लगाश के समीप तथा एल स काश्मारा प्रयाग कहत है, जो इस समय शादापुर हिन्वा मे शवदाह के चबूतरे मिले है, जिनपर शव ग्राम के समीप है।
रखकर फूका जाता था। शव मृत्तिका के बक्स या पाद-टिप्पणी:
कफन मे रखा जाता था। उसे अग्निपर रख देते थे। ५६. (१) दाह : श्रीनगर में स्मशान वितस्ता मृत्तिका पात्र या केस मे शरीर भस्म हो जाता था। तथा महासरित या मारी के संगम पर था। यही पर भस्म पात्र में रखकर कुल के शवाजिर मे गाड़ दिया दाह क्रिया की जाती थी। कल्हण ने राजा उच्चल जाता था। अक्कद तथा सुमेर मे शवदाह प्रथा खूब (सन् ११०१-११११ ई०) के दाह संस्कार का प्रचलित थी।
जै. रा. २०