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जैनराजतरंगिणी
नवीनोदारकेदारभूम्युत्पन्नाः
प्रतिस्थलम् ।
कूटा धान्यफलैः पुष्टा दृष्टाः पर्वतसन्निभाः ।। २५ ।।
२५. हर स्थान पर नवीन केदार भूमि में उत्पन्न धान्य- फल से पूर्ण, पर्वत सदृश, (धान) ढेर दिखायी देते थे ।
आयु के पचास वर्ष बीत चुके है । इसका रात्रिकाल ही नैमित्तिक प्रलयकाल माना जाता है । ब्रह्मा का एक दिन ४३,२,००,००,०० वर्ष का माना जाता है । ब्रह्मा का एक वर्ष विष्णु के एक दिन के बरावर एवं विष्णु एक वर्ष शकर के एक दिन के बराबर होता है ।
(४) जन, अजमीढ के पुत्र थे । माता का नाम केशनी था। अजमीढ के पिता हस्तिन् ने हस्तिनापुर की स्थापना किया था । जन्तु एक ऋषि है । भगीरथ गंगा लाये । इनका नाम गंगावतरण के सन्दर्भ मे आता है । इनका यज्ञस्थल गंगा अपने प्रवाह में बहा ले गयी । क्रुद्ध होकर गंगा के समस्त जल का पान कर लिया । देवों की प्रार्थना पर अपने कान से गंगा को निकाल दिया। गंगा को इनकी पुत्री कहकर जान्हवी नाम रखा गया है (रामा० : बाल० : ४३ ३५-३८ ) ; ( आदि० ९९ : ३२; अग्नि ० २७८ : १६;
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वायु० : ९१ ) ।
[१ : ५ : २५
(५) मनु : आदि पुरुष है । ऋग्वेद मे इसे पिता कहा गया है । मानव जाति को मनु की प्रजा माना गया है । मनु ने यज्ञप्रथा का आरम्भ किया था । विश्व का प्रथम यज्ञकर्ता है। इसने सर्व प्रथम हवि प्रदान किया था । इन्होंने अग्नि की स्थापना किया था । चौदह मनवन्तर माने गये है । प्रत्येक मनवन्तर का एक मनु होता है। इस समय वैवस्वत मनवन्तर चल रहा है । प्रत्येक मन्वंतर के मनु, सप्तर्षि, देवगण, इन्द्र, अवतार पुत्र भिन्न होते हैं। मनु दश पुत्र थे । उन्होंने राजवंशों की स्थापना की थी - इक्ष्वांकु, अयोध्या - ( इक्ष्वाकु वंश) शर्याति ( आनर्त देश - शर्यात राजवंश ) नाभा ने
दिष्ट ( उत्तर विहार - वैशाल राजवंश ) नाभाग ( मध्य देश नाभाग राजवंश ), घृष्ट (वाहीक प्रदेशघाट क्षत्रिय राजवंश ) ; नरिष्यन्त ( शक वंश ), करुष ( रेवा प्रदेश -- करुष वंश ), पृषध ( राज्य नही मिला), प्रांशु ( वंश की जानकारी नही प्राप्त है ), मनु की रचना 'मनुस्मृति' किंवा मानव धर्मशास्त्र है ।
(६) भगीरथ : इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट दिलीप के पुत्र थे । प्रपितामह असमंजस थे और पितामह - अंशुमत थे । असमंजस के पिता राजा सगर के ६० हजार पुत्र कपिल मुनि के शाप के कारण दग्ध हो गये थे । कपिल ने कहा दिवंगत आत्माओ को शांति गंगावतरण से होगी। अंशुमान तथा दिलीप ने तप किया किन्तु सफल नही हुए। भगीरथ ने हिमालय पर घोर तप किया। गंगा पृथ्वी पर आने के लिए उद्यत हो गयी। गंगा का वेग रोकने के लिए भगीरथ ने शंकर की तपस्या किया । शंकर गंगा प्रवाह जटा द्वारा रोकने के लिए तत्पर हो गये । गंगावतरण हुआ । भगीरथ गंगा को उस स्थान पर ले गये जहाँ राजा सगर के ६० हजार पुत्र दग्ध हुए थे । गंगास्पर्श से सगर पुत्र मुक्त हो गये। गंगा का अवतरण भगीरथ के कारण हुआ था अतएव गंगा का नाम भागीरथी पड़ा । गंगावतरण के पश्चात् भगीरथ पूर्ववत् राज्य करने लगे । भगीरथ ने अपनी दानशीलता के कारण प्रसिद्धि प्राप्त किया । महाभारत में वर्णित सोलह श्रेष्ठ राजाओं में एक भगीरथ भी हैं ।
कालान्तर मे
पाद-टिप्पणी :
३५. (१) केदार भूमि : धान का खेत अथवा धान की क्यारी, जल से भरा खेत ।