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१४२ जैनराजतरंगिणी
[१:५ : २२ अन्नसत्रमविच्छिन्नं कृत्वा शुरपुरध्वना ।
शुल्कास्थाने व्यधाद् राजा भारिकानभिसारिकान् ॥ २२ ॥ २२. राजा ने शुल्क के स्थान पर, अविच्छिन्न अन्नसत्र प्रदान कर, शूरपुर' मार्ग से जानेवाले अभिसारिकों को भारवाही बना दिया।
तट पर है। नगर मे दश से ऊपर मसजिदे तथा क्षेत्र में एक लघु राज्य था। काश्मीर राजा उत्पलाआठ जियारतें है। उनमें बाबा नसीबहीन गाजी की पीड के समय यह काश्मीर के अन्तर्गत था। शंकर
वर्मा ने उस पर पुनः विजय प्राप्त किया था, जब वह जियारत सबसे बड़ी है। यह नदी के वाम तट पर
गुजरात, जो भीमवर के दक्षिण था, विजय हेतु गया नगर के उत्तर जामा मसजिद के समीप है। वाद
था। दर्वाभिसार का उल्लेख सिकन्दर के अभियान शाही बाग सन् १६५० ई० में दारा शिकोह के के समय भी मिलता है। वहाँ का राजा सिकन्दर के आदेश पर बनाया गया था। द्र० : १ : ३ : १३; पास गया था । दर्व एक जाति है। यह बल्लावर १:४:४;३ : २०३; ४ : ५३२ ।
तथा जम्मू में रहती थी। दर्व जाति के साथ ही
अभिसार जाति आबाद थी। इन्हीं जातियों के नाम पाद-टिप्पणी:
पर क्षेत्र का सम्मिलित नाम दर्वाभिसार पड़ गया पाठ-बम्बई
था। अभिसार का उल्लेख बृहत्सहिता मे वराह २२. (१) शूरपुर = हूरपुर : ( रा० : क०
मिहिर ने किया है। अभिसार झेलम-चनाव के मध्य ३ : २२७; ५ : ३९; ७: ५५८; १३४८-१३५५;
का अंचल था, जबकि एक मान्यता के अनसार दर्व ८ : १०५१-११३४ आदि, श्रीवर : १:१:१०७, चनाव तथा रावी के मध्य माना गया है। दर्व तथा १६४; ३ : ४२, ४ : ३९, ४४२, ५२६, ५३१, अभिसार दो जातियाँ तथा जनपद थे। प्राचीन ५५८,५८४, ६०६ ।
काल में दो जनपदों को मिलाकर भी नामकरण
किया जाता था, जैसे काशी-कोशल आदि । महाभारत (२) अभिसार : शब्द यहाँ श्लिष्ट है । अभि
में दर्व एवं अभिसार दो भिन्न जनपद माने गये है सार का अर्थ जानेवाले मुख्यतः शीघ्र जानेवाला
(रा०:८. १५३१, १८६१; ४ : ७१२, १४१; होता है। उन्हे राजा ने इतना भोजन खिला कर
सभा० : ५१ : १३; ४८ : १२, १३, भीष्म० : बोझिल कर दिया कि वे शीघ्र चलने या जाने योग्य ।
९ : ५४; २७ : २९; ५२ : १३; ९३ : ४४, बृहत् नहीं रह गए थे। अभिसार का दूसरा अर्थ एक
संहिता : १४ : २९, अल्बेरूनी : १ : ३०३; द्रष्टव्य अभिसार देश के रहनेवालों से लगाया जा सकता।
टिप्पणी : ४ : ७१२)। है। दर्वा-भिसार शब्द का एक साथ प्रयोग किया गया है। दर्वाभिसार की दवं जाति झेलम तथा
इसी अर्थ के अनुसार अर्थ होगा कि राजा ने चनाव नदियों के मध्यवर्ती पंछ तथा नौशेरा अंचल
अभिसार निवासियों को जो अन्नसत्र में भाग लिये में रहती थी। पुराण, महाभारत तथा बृहत् संहिता में पंजाब की जातियों के सन्दर्भ में थे, उन्हे इतना खिला दिया कि वे कश्मीर से अभिसार दर्वाभिसार का उल्लेख किया गया है। राजौरी का अपने देश जाने में भारवाही व्यक्ति की तरह शिथिल पर्वतीय क्षेत्र दर्वाभिसार में आता है। भीमवर इसी हो गये थे।