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१: ५ . १२-१५ श्रीवरकृता
१३९ कदाचिल्लाहरं दुर्ग यात्रां द्रष्टुं गतो नृपः ।
राजवासं नवं कृत्वा जीर्णोद्धारमकारयत् ।। १२ ॥ १२. किसी समय राजा यात्रा देखने के लिये, लहर' दुर्ग गया। वहाँ राजवास का जीर्णोद्धार कर, नया बनाया।
समुद्रकोटादारभ्य यावच्छ्रीद्वारकावधि । तत्तन्नवनवावासवासवालयसुन्दरान्
॥ १३ ॥ १३. समुद्रकोट' से लेकर, द्वारका पर्यन्त, नये-नये इन्द्र गृह के समान, सुन्दर नवीन, आवासों से युक्त
जैननामाङ्कितान् ग्रामानकरोन्नगभूषितान् ।
उपतीरं महापद्मश्रीमत्पन्नगभूषितान् ।। १४ ॥ १४. जैन' नाम से अंकित, नग भूषित', महापद्म एवं श्रीमद् पन्नग विभूषित, ग्रामों को उसके तट पर निर्मित कराया।
तदन्नसत्रतृप्तानामर्थिनां त्रिपुरेश्वरे ।
उदरं मेदुरं क्षान्तो राजा लम्बोदरः कथम् ॥ १५ ॥ १५. त्रिपुरेश्वर' में उसके अन्नसत्र से तृप्त, याचकों का उदर परिपूर्ण हुआ और नहीं तो क्षमाशील राजा लम्बोदर ( गणेश ) कैसे हुआ?
पाद-टिप्पणी :
(२) नग भूषित : वृक्षों से विभूषित, जैन १२. (१) लहर : वर्तमान परगना लार है। ग्राम निर्माण कराया। यदि नग का अर्थ सात मान पूर्वकाल में लहर कहा जाता था। सिन्ध उपत्यका लिया जाय तो सात ग्रामों का निर्माण महापद्मसर का पश्चिमी अंचल है। तहसील का केन्द्र अर- के समीप कराया था। तस है।
(३) पन्नग भूषित : पन्नग का अर्थ सर्प पाद-टिप्पणी :
होता है। सर्प नाग को भी कहते है। महापद्मसर १३ (१) समुद्रकोट : वर्तमान सुन्दरकोट मे नाग अथवा जलस्रोत आकर मिलते थे। उन्ही है। ऊलरलेक के पूर्वीय तट पर है ( रा०क० की ओर श्रीवर संकेत करता है। जैन नाम का ग्राम १:१२५-१२६ )। सिघिड़ा के पैदावार के समय नाग ( जलस्रोत ) स्थानों पर निर्माण कराया। यहाँ चहल-पहल हो जाती है। इसका उल्लेख पुनः पाद-टिप्पणी : श्रीवर नही करता।
१५. (१) त्रिपुरेश्वर : श्रीनगर के समीप (२) द्वारका : अन्दरकोट ( रा० क०:४: एक तीर्थ था। वर्तमान त्रिफर है डललेक से ३ मील ५०६-५११ ) तथा श्रीवर० : ४ ३४७ ।
दूर है ( रा० : ० ४ : ४६; ६:१३५ : ५ : पाद-टिप्पणी:
१२३;७ : १५१, ५२६ : ९५६)। १४ (१) जैन : जैनुल आबदीन ।
(२) अन्नसत्र : श्रीवर राजा के द्वारा