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श्रीवरकृता
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तस्याः समीपे नृपतिश्चत्वारिंशेऽथ वत्सरे ।
इष्टिकादारुसंबद्धं राजवासं नवं व्यधात् ॥ ५॥ ५. राजा ने चालीसवें' वर्ष उसी के समीप ईंटा और लकड़ीमय नवीन राजप्रासाद निर्माण
कराया।
यत्पृष्ठे स्वर्णकलशो भाति ति मनोहरः ।
हेमपद्म इवोन्मुक्तः शक्रेण श्रुतकीर्तिना ॥ ६ ॥ ६. जिसके ऊपर मनोहर स्वर्ण कलश शोभित होता है, मानो इन्द्र ने कीर्ति सुनकर स्वर्णकलश गिरा दिया है।
यद्वारागनियुक्तेभ्यस्तत्तत्कर्म समादिशन् ।
आजीवं सोऽवसद् राजा राजधान्युज्ज्ञितास्थितिः ॥ ७॥ ७. जिसके द्वार पर, नियक्त जनों को तत-तत् कर्म का आदेश देते हए, वह राजा राजधानी की स्थिति त्याग कर, जीवन पर्यन्त वहीं पर निवास किया।
सन् १४३९ ई० = विक्रमी १४९६ - शक १३६१ % नौशहरा तथा प्राचीन नाम विचार नगर था। इसे कलि गताब्द = ४५४० वर्ष ।
राजदान या राजधानी मिर्जा हैदर दुगलात के समय (२) जैननगर : सारिका किंवा हरिपर्वत
मध्य सोलहवी शताब्दी तक कहते थे। . से अम्बुरहर तक जैन नगरी विस्तृत थी। यह जैन- पाद-टिप्पणी गंगा के तट पर थी। जैनगंगा को आजकल लछम ५.( १ ) चालीसवें वर्ष : सप्तर्षि ४५४० = कल करते है। यह राजधानी अथवा राजदान नाम सन १४६४ ई० = १५२१ विक्रमी = शक संवत् से ज्ञात थी। एक मत है कि जैनदब ही जैननगर
१३८६ = कलि गताब्द ४५६५ वर्ष ।
। है ( तारीख : रशीदी : पृ० २४९)।
पाद-टिप्पणी : __ मिर्जा हैदर लिखता है कि यह भव्य इमारत १२ मंजिलों की थी। प्रत्येक मजिल में ५० कमरे
६. (१) श्रुतकीर्ति : प्रसिद्ध, विश्रुत, उदार थे। मिर्जा हैदर ने इसे सन् १५५३ ई० मे देखा
व्यक्ति आदि। था । तत्पश्चात् यह नष्ट हो गया । उसके गौरव की पाद-टिप्पणी : स्मृति में पर्यो, उत्सवों तथा रमजान अव पर महि
७. श्री कण्ठकौल संस्करण के उक्त श्लोक का लाएँ गाना गाती है।
चतुर्थ पाद अर्थात् द्वितीय पंक्ति का अन्तिम भाग शुक ने इसका उल्लेख किया है (शुक० : का पाठ मानकर अनुवाद करने पर अर्थ नहीं बैठता, २ : ६७) । जोनराज ने भी इसका उल्लेख किया है बम्बई तथा कलकत्ता संस्करण का पाठ मानकर ( जो० : ८६९)। यहाँ की आबादी सोवरा से अनुवाद करने पर यह कठिनाई दूर हो जाती है। हरिपर्वत तक फैली थी। एक मत से मुसलिम नाम श्री कण्ठकोल का पाठ है-राजधान्युज्झितस्थितिः ।
जै. रा. १८