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श्रीवरकृता
महीपतेः ।
खुरासानागतो मल्लाजादकारूयो वादनात् कर्मवीणायाः प्रापातुलमनुग्रहम् ॥ ३२ ॥
३२. खुरासान' से आगत मल्लाजादक ने कूर्म वीणा के बादन से महीपति का अतुल अनुग्रह प्राप्त किया।
१ : ४ : ३२-३३ ]
म्लेच्छवाग्गेयकारकः । राजोऽभूदतिरञ्जकः || || ३३ ॥
३३. म्लेच्छ वाणी' में गीतकारक मल्लाज्य ने राजा का उसी प्रकार अनुरंजन किया
जिस प्रकार नारद इन्द्र का ।
पाद-टिप्पणी:
मल्लाज्य मालनामापि
नारदो
वासवस्येव
कलकत्ता का ३६५वी पंक्ति है।
३२. ( १ ) खुरासान : यह ईरान का नवाँ प्रान्त है । इसका विस्तार उत्तर-दक्षिण ५०० तथा पूर्व-पश्चिम ३०० मील है। दक्षिण में पर्वतीय भाग भी ११ से १३ हजार फीट तक है । मेसद इस प्रदेश की राजधानी है। कालीन, चर्म, अफीम, इमारती लकड़ी, कपास की बनी वस्तुएँ तथा रेशम का रोजगार होता है । यहाँ की केशर, पिस्ता, गोंद, कम्बल तथा नीलमणि प्रसिद्ध है ।
( २ ) मल्लाजादक : मुल्ला जाद= म्युनिख ( पाण्डु० : ७३ ए० ) से ज्ञात होता है कि खुरासान से आनेवाला मुल्ला जाद था । श्रीवर ने मुल्लाजाद का मल्लाजादक नाम लिखा है । मुल्ला शब्द अरबी है। मौलवी, फाजिल, अजान देनेवाला तथा बच्चों के पढ़ानेवालों के अर्थ भी प्रयोग होता है।
( ३ ) कूर्म वीणा : इसे कच्छपी वीणा भी कहते है । द्रष्टव्य टिप्पणी : २ : ५७ । पाद-टिप्पणी
कलकत्ता संस्करण की ३६६वी पंक्ति है। ३३. (१) म्लेच्छ वाणी परशियन भाषा : । क्योंकि मुल्ला जाद खुरासान का निवासी था। जहाँ की राजभाषा परशियन थी । जनुल आबदीन के समय में भी काश्मीर की राजभाषा परशियन हो गयी थी यद्यपि संस्कृत का भी प्रचलन था । (२) मल्लाव्य : मुल्ला जमील - यह केवल = कवि तथा चित्रकार ही नहीं था बल्कि परशियन का
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गीत पारगत भी था ( म्युनिख पाण्डु० : ७२ ए०; तवक्काते अकवरी : ३ : ४३९ । आइने अकवरी मे उल्लेख है - मुल्ला जमील चित्रकारी तथा संगीत दोनो में पारंगत था ( पृष्ठ ४३९ ) । तवक्काते अकबरी में उल्लेख है - मुल्ला जमील हाफिज जो कविता करने तथा पढने मे अद्वितीय था, सुल्तान द्वारा अत्यधिक आश्रय प्राप्त किया था। उसके स्वर आज तक काश्मीर में प्रसिद्ध है ( ६५७ ) । यहाँ पर स्वर के स्थान पर नक्श शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ चित्रकारी भी होता है। आइने अकबरी २ : ३८८-३८९; तवक्काते : ३ : ४३९।
(३) नारद : ब्रह्मा के मानसपुत्र है । नारद त्रिकाल आकाश मार्ग से तीनों लोकों में संचार करते है । नानार्थ-कुशल है । वेद-वेदाग मे पारंगत, ब्रह्मज्ञान युक्त एवं नय-नीत है। उनकी शरीर काति श्वेत एवं तेजस्वी है । इन्द्र द्वारा प्रदत्त श्वेत मृदु एवं पूरा वस्त्र परिधान करते है। कान में सुवर्ण कुण्डल, स्कन्ध प्रदेश पर वीणा, मूर्धा पर श्लक्ष्ण शिखा रहती है । ब्रह्मा की जंघा से उत्पन्न विष्णु के तृतीय अवतार माने जाते है ( भा० १: : ३ : ८, १२; मत्स्य : ३ : ६-८ ) । नर-नारायण के उपासक है । नारद उच्च श्रेणी के संगीतज्ञ, संगीत शास्त्र में निपुण एवं स्वरज्ञ है । उनकी नारद संहिता संगीतशास्त्र का ग्रन्थ प्राप्य है। वह इन्द्रसभा में उपस्थित रहते है। एक बार इन्द्र ने पूछा' किस अप्सरा को गाने की अनुमति दूँ ?' नारद ने
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