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जैन राजतरंगिणो
यैः सेवा कृता तस्य शाह्यादेशे विचार्य तान् । पुत्रस्नेहेन भूपालो घोषराष्ट्राधिपान् व्यधात् ।। ५० ।।
५०. शाह्य' देश में जिन-जिन लोगों ने उसकी सेवा की थी, विचारकर, राजा ने उन्हें पुत्र स्नेह से घोष' राष्ट्र का अधिपति बना दिया ।
प्रेष्याद्याक्षेपसिन्ध्वौघमग्नांस्तान् प्रसादपट्टपोन
समुत्तीर्णान्
५१. आक्षेप ( निन्दादि ) रूप सिन्धु के ओघ में मग्न, उन सेवक समूहों को राजा ने अपने अनुग्रह' रूप नाव द्वारा पार कर दिये ।
विद्वद्गीताङ्गिभृत्येभ्यस्तस्मिन्नवसरे सुतात्यानन्दवाष्पाढ्यो व्यधात्
५२. उस समय पुत्र प्राप्ति के आनन्द से वाष्पपूर्ण राजा ने विद्वान्, गायक एवं भृत्यों पर कनक वृष्टि की।
पाद-टिप्पणी :
उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का ३८३वी पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का ५०वां श्लोक है ।
५०. (१) शाह्य देश : हिन्दुस्तान । परशियन लेखकों ने 'दर हिन्दुस्तान' अर्थ किया है ।
[ १ : ४ : ५०-५२
श्रीवर ने सा देश का उल्लेख किया है । 'शेल' या 'शे' स्थान सिन्धु नदी पर लेह से ऊपर है । यहाँ बुद्ध की प्रतिमा बहुत ही सुन्दर पर्वत में खुदी है । मैं यहाँ आ चुका हूँ । शाह्य का पाठभेद साह्य एवं बाह्य देश भी मिलता है । उसके अनुसार परशियन लेखकों द्वारा वर्णित 'दर हिन्दुस्तान' शब्द ठीक बैठता है । काश्मीर में 'बाह्य' देश का सर्वदा तात्पर्य काश्मीर के बाहर का देश लगाया गया है। वह स्थान हिन्दुस्तान में ही होगा अतएव फारसी में 'दर हिन्दुस्तान' लिखा गया 1
( २ ) घोष राष्ट्र एक गाँव या परगना है कुछ स्पष्ट नहीं होता । इस शब्द का केवल यही प्रयोग किया गया है। इसका उल्लेख अन्य राजतरंगिणीकारों ने नहीं किया है।
सेवकान् ।
व्यधान्नृपः || ५१ ॥
नृपः । कनकवर्षणम् ॥ ५२ ॥
पादटिप्पणी :
कलकत्ता संस्करण की ३८४वी पंक्ति है । प्रथम पद के प्रथम चरण का पाठ सन्दिग्ध है ।
५१ ( १ ) अनुग्रह : तवक्काते अकबरी में उल्लेख है - हाजी खाँ ने निष्टा के हेतु कटिबद्ध होकर इस ओर कोई कसर उठा न रखी और अपने सेवकों को जो हिन्दुस्तान की यात्रा में उसके सहायक थे सिफारिश करके उनके लिये बड़े-बड़े पद सुलतान से ले लिये तथा अच्छी-अच्छी जागीरें उनके लिये निश्चित करायी ( ४४४ ) ।
पाद-टिप्पणी :
कलकत्ता संस्करण की ३८५वीं पंक्ति है । ५२. ( १ ) कनक वृष्टि : कल्हण ने राजा गुप्त के लिये कंकण की कथा का उल्लेख किया है ( रा० : ६ : १६१ ) । श्रीवर कल्हण का अनुकरण करता, जैनुल आबदीन को ' कनकवर्षी' लिखता है । राजा अभिमन्यु का अपर नाम ही कंकणवर्षी पड़ गया था ( रा० : ६ : ३०१ ) ।