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चतुर्थः सर्गः चैत्रोत्सव :
अत्रान्तरे मदनबन्धुरयाद् वसन्तः
शृङ्गारसारकुमुदाकररोहिणीशः मानान्धकारविनिवारणभानुमूर्तिः
स्फूर्जल्लतालिललनानवयौवनश्रीः ॥१॥ १. इसी बीच मदनबन्धु वसन्त समाप्त हुआ, जो शृंगार सर्वस्व रूप कुमुदाकर के लिए चन्द्रमा, मान रूप अन्धकार निवारण के लिए भानुमूर्ति, स्फूर्जित होती लता एवं ललनाओं के लिए नव-यौवनश्री था।
ततश्चैत्रोत्सवे राजा पुष्पलीलाचिकीर्षया ।
ययौ मडवराज्योर्वी नौकारूढः सुतान्वितः ॥ २ ॥ २. तदोपरान्त चैत्रोत्सव' में पुष्पलीला की इच्छा से पुत्र सहित राजा नौकारूढ़ होकर, मड वराज भूमि पर गया।
पाद-टिप्पणी :
पिघलने लगता थी तो हिन्दू-मुसलमान सभी हरी १. उक्त श्लोक बम्बई का १ तथा कलकत्ता पर्वत पर एकत्र होते थे और उत्सव मनाया जाता संस्करण की ३३५वी पंक्ति है।
था। पाद-टिप्पणी:
चैत्र उत्सव के स्थान पर नौरोज का उत्सव
मनाया जाता था। चैत्र मास ( मार्च-अप्रैल ) में २. (१) चैत्रोत्सव : चैत्र मास में चैत्रकृष्ण
ही नव-वारम्भ में होता था। यह समय मार्च २३ एकादशी, चैत्रकृष्ण चतुर्दशी, चैत्र अमावस्या, चैत्र
से ११ तक ९ दिन का होता है। इस समय काश्मीरी शुक्ल परिवा, पंचमी, षष्ठी, नवमी, एकादशी,
नवीन वस्त्र पहनते थे। उमंगपूर्ण उत्सव का आयोद्वादशी, त्रयोदशी तथा चैत्र पूर्णिमा, व्रत, पूजा एवं
जन किया जाता था। हरी पर्वत, निशात, शालीमार उत्सव के लिये विहित थे।
आदि स्थानों में लोग उत्सव मनाते थे। हमें (२) पूष्प उत्सव : मैंने काश्मीरियों से बहुत अच्छी तरह स्मरण है। लोकसभा में मैं बैठा था। पछा परन्तु लोग कुछ ठीक से इस पर प्रकाश नहीं डाल मेरे पास ही श्रीमती उमा नेहरू की भी सीट थी। सके। एक महिला ने मुझे बताया कि उनके बील्य- पंडित जवाहरलाल जी उमा नेहरू के पास आये । काल में जब बादाम में फूल लगता था और बरफ वे उनकी चाची लगती थीं। उन्हें देखते ही उमा जी