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श्रीवरकृता
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स्वकीयराजवासस्थो राजावन्तिपुराद् गतः ।
विजयेशादिदेशेषु नाटयं द्रष्टुमुपाविशत् ।। ४ ॥ ४. राजा अवन्तिपुर' गया और विजयेश आदि देशों में अपने राजप्रासाद में स्थित होकर, नाटक देखने के लिये बैठता था।
हरांशं भूभुजं जेतुं यत्र राजसभानिभात् ।
भवाशक्तोऽभवत् कृत्वा बहुधा स्वं मनोभवः ॥ ५॥ ५. जहाँ पर, कामदेव शिवांश' राजा को जीतने के लिए, राजसभा के व्याज से अपना बहुत रूप बनाकर, भवाशक्त हो गया।
सालङ्कारप्रबन्धज्ञाः सिद्धान्तश्रुतविश्रुताः ।
यत्रान्तःकरणोध क्ता द्रष्टारो गायना अपि ।। ६ ।। ६. जहाँ पर, द्रष्टा एवं गायक भी अन्तःकरण से उत्सुक, अलंकार सहित प्रबन्ध' के ज्ञाता तथा सिद्धान्त श्रुत में प्रख्यात थे।
पाद-टिप्पणी:
लेखक शिव का अंश राजा है, इस सिद्धान्त के प्रति४. (१) अवन्तीपुर : वनिहाल-श्रीनगर राज
पादन हेतु दुहराते है : पथ पर वन्तपुर या वन्तपोर है । यह शब्द अवन्तिपुर
कश्मीराः णर्वती तत्र राजा जेयः शिवांजः। का अपभ्रंश है। ऊलर परगना मे वितरमा
नाऽवज्ञेयः स दुष्टोऽपि विदुपा भूति मिच्छता। तट पर है। यहाँ दो मन्दिरों के खण्डित ध्वन्सावशेष
रा० : १ : ७२. बिखरे है। वे अवन्तीश्वर तथा अवन्ति स्वामी के है। नीलमत पुराण में इसी भाव को दूसरे शब्दों मे वानपोर ग्राम स्थित मन्दिर अवन्ति स्वामी तथा प्रकट किया गया है। इससे बड़ा मन्दिर, पहले से आध मील उत्तर- कश्मीरायां तथा राजा त्वया ज्ञेयो हराशंज. । पश्चिम जौवार ग्राम मे अवन्तीश्वर का है। सन तस्यावज्ञा न कर्तव्या सततं भूति मिच्छता। १८६० ई० में यहाँ खनन कार्य हुआ था। कोई
नी० २४६। विशष।सामग्री नहीं मिली थी। राजा अवन्तिवर्मा क्षेमेन्द्र लोकप्रकाश मे लिखता है : (१०६१) ने नगर तथा मन्दिरों की स्थापना की थी। द्रष्टव्य सती च पार्वती ज्ञेया राजा ज्ञेयो हराशंज । टिप्पणी : जोनराज० : ३३१, ३३५ ८६५, जैन० : नीलमत पुराण तथा क्षेमेन्द्र ने 'हरांशजः' तथा ३ : ४२ ।
कल्हण ने 'शिवाश' दिया है। श्रीवर ने कल्हण का
अनुकरण किया है। (२) विजयेश : विजब्रोर-विजवेहरा-विजयेश्वर क्षेत्र।
पाद-टिप्पणी:
६. द्वितीय पद के प्रथम चरण का पाठ पाद-टिप्पण :
सन्दिग्ध है। ५. (१) शिवांश : कल्हण ने एक पुराण (१) प्रबन्ध : प्रबन्ध-काव्य-पद्यबद्ध तथा वचन का उल्लेख किया है। उसी को काश्मीरी सर्गबद्ध कथात्मक काव्य होता है। अविच्छिन्न तथा