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१:४:१५-१६] श्रीवरकृता
१२१ जलान्तविम्बिता क्वापि दीपाली नागलोकतः ।
वरुणेन नृपप्रीत्या दापितेवायु तत् तदा ॥ १५॥ १५. उस समय कहीं पर. जल मध्य प्रतिबिम्बित दीपमाला. इस प्रकार प्रकाशित हो रही थी, मानो वरुण' ने नृपति-प्रेम के कारण, नागलोक से ही ( उन्हें ) प्रकट कराया है ।
ता दीपिता दीपमाला द्विधा रङ्गे चकाशिरे।
दिदृक्षागतनागानां फणामणिगणा इव ॥ १६ ॥ १६. रंगमंच पर दीपित वे दीपमालाएँ, देखने की इच्छा से, आगत नागों के फण पर स्थित, मणिगण सदृश शोभित हो रही थी। नामों में एक नाम सुर भी। रामायण ने सुर की एवं तारामण्डल इसी के कारण दृश्यगत होते है। परिभाषा किया है-'सुरा प्रतिग्रहाद् देवाः सुरा इसके विधान के कारण पृथ्वी एवं द्युलोक अलग है । इत्यभिविश्रुताः।
वायुमण्डल में भ्रमण करता वायु, वरुण का स्वांस पाद-टिप्पणी:
है। वैदिक साहित्य में उसे असुर अर्थात् असुर शक्ति१५. (१) वरुण : सर्वश्रेष्ठ वैदिक देवता है।
युक्त तथा बंधक एवं शासक वरुण कहा गया
है। बंधक रूप से वह सृष्टि की समस्त शक्तियों को वैदिक साहित्य में आकाश तथा वैदिकोत्तर साहित्य
बाँध कर योजनाबद्ध करता है। शासक वरुण अपने में समुद्र का प्रतीक माना गया है। वैदिक साहित्य पाशों द्वारा आज्ञाकारियों पर शासन करता है। में वरुण सृष्टि के नैतिक एवं भौतिक नियमों का
अथर्ववेद ने उसे सार्वभौम नहीं बल्कि केवल सर्वोच्च प्रतिपालक माना गया है। वैदिकोत्तर साहित्य में देवता रूप में प्रजापति का विकास होने के
जल का ही नियंत्रक बताया है। महाभारत में उसे कारण वरुण का श्रेष्ठत्व कम होता गया है। इस
चौथा लोकपाल माना गया है। जल का स्वामी
एवं जल में निवास करनेवाला बताया गया है। समय वह केवल जल का ही देवता माना जाता है। वरुण की मुखकान्ति अग्नि के समान तेजस्वी है।
ओल्डेनवर्ग का मत है कि वरुण भारतीय देवता नहीं सूर्य के सहस्र नेत्रों से मानव जाति का अवलोकन
है। उसका उद्गम ज्योतिष शास्त्र में प्रवीण शामी करता है। अतएव उसे सूर्यनेत्री कहा गया है।
अर्थात् सेमेटिक लोगों में हुआ था। वरुण एवं मित्र शतपथब्राह्मण में वह श्वेत वर्ण, गंजा एवं पीले
क्रम मे चन्द्र एवं सूर्य थे। नेत्रोंवाला माना गया है। उसे वृद्ध पुरुष कहा जाता
वरुण की पत्नी ज्येष्ठा थी। वह शुक्राचार्य की है। वरुण का आवास द्यु लोक में है। गृह स्वर्ण
कन्या थी। उससे बल, अधर्म एवं पुष्कर नामक
का निर्मित है।
पुत्र तथा सुरा नामक कन्या उत्पन्न हुई थी। इसकी
अन्य पत्नी वारुणी अथवा गौरी थी। उससे गो गृह मे सहस्र द्वार है। सहस्र स्तम्भों वाले आसन पर बैठता है। वरुण के गुप्तचर | लोक से
नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। तृतीय पत्नी शीततोया
से श्रुतायुध नामक पुत्र हुआ था। उतर कर जगत में भ्रमण करते है। ऋग्वेद में उसे . विश्व का सम्राट् कहा गया है । पृथ्वी पर रात्रि एवं (२) नागलोक : द्रष्टव्य टिप्पणी : १:५: दिन की स्थापना वरुण द्वारा की गयी है। उनका ३७ तथा परिशिष्ट 'ध' पृष्ठ २६ ( राज० : खण्ड : नियमन भी वही करता है। रात्रि में दृष्टिगत चन्द्र १, लेखक ) ।
जै. रा. १६