________________
जैन राजतरंगिणी
किं राजा लोकलोभात् तटभुवि मिलिताः पूर्वभूपालजीवाः किं व्योम्नस्तारकौघः शशधरविमुखः सेवनायावतीर्णः । किवा सिद्धाः सुरेन्द्रा निजरुचिरुचिराः प्रेक्षणायोपविष्टाः किं वैता दीपमाला इति जनमनसामास्त दूराद् वितर्कः ॥ १७ ॥ १७. राजा के आलोक लोभ से तट भूमि पर पूर्व भूपालों के जीव ही एकत्रित हो गये हैं क्या ? अथवा चन्द्रमा से विमुख होकर, तारक पुज आकाश से सेवा हेतु अवतीर्ण हुआ है क्या ? अथवा अपनी रुचि के कारण रुचिर सिद्ध सुरेन्द्र' देखने के लिये बैठे हैं क्या ? अथवा ये दीपमालाएँ हैं ? इस प्रकार दूर-दूर का तर्क-वितर्क लोगों के मन में हो रहा था । साक्षादेष पुरन्दरः कविबुधा विद्याधराः सेवका
१२२
अन्ते देवसभासदः सवपुषः सिद्धा अमी योगिनः । एता अप्सरसो रसोर्जितगुणा गन्धर्वका गायना
पाद-टिप्पणी :
[१ : ४ : १७ - १८
रङ्गोऽयं त्रिदिवस्थलीति जगदुः सर्वे जनाः प्रेक्षकाः ॥ १८ ॥
१८. 'यह साक्षात् पुरन्दर' हैं, कवि, बुध एवं विद्याधर ४ सेवकजन हैं, और अन्त में देव सभासद् हैं, ये योगी शरीरधारी सिद्ध" हैं, रसोर्जित गुणवाली ये गन्धर्व गाइकाएँ, अप्सराएँ है, यह रंगस्थल स्वर्गस्थली है' - इस प्रकार सब दर्शकों ने कहा ।
पाठ - बम्बई ।
१७. ( १ ) सुरेन्द्र : इन्द्र । पाद-टिप्पणी :
१८. ( १ ) पुरन्दर : वैवस्वत मनवन्तर के इन्द्र का नामान्तर पुरन्दर है । शत्रु का पुर किंवा नगर नष्ट किया था अतएव नाम पुरन्दर पडा है । ( भाग० ८ : १३ : ४, ९ : ८ : ८, १० : ७७ : ३६-३७, १२ : ८ : १५; ब्रह्मा० २ : ३६ : २०५ वायु० : ३४ : ७५, ६२ : ११८, ६४. ७, ६७ : १०२; विष्णु ० ३ : १ : ३१, ४० ) । मत्स्यपुराण मे निर्दिष्ट अठारह वास्तुशास्त्रकारों में पुरन्दर का निर्देश प्राप्त है ( मत्स्य० : २५-२ : २-३ ) । तप अथवा पांचजन्य नामक अग्नि का पुत्र पुरन्दर था । महान तपस्या के पश्चात् तप को अग्नि से तपस्या फल प्राप्त हुआ। उसे प्राप्त करने के लिये स्वयं इन्द्र ने पुरन्दर नाम से अग्नि के पुत्र रूप में जन्म लिया था वन० : २११ : ३ ) ।
(२) कवि : शुक्राचार्य ।
(३) बुध : इसका अर्थ विद्वान एवं पण्डित है । यदि नामवाचक शब्द माना जाय तो नवग्रहों में एक शुभ ग्रह है । इसका पिता बृहस्पति माना गया है ।
(४) विद्याधर : एक देव योनि है । इसे अर्ध देवता माना है। पुराणों में इनके राजाओं के नाम चित्रकेतु, चित्ररथ किंवा सुदर्शन दिये है ( भा० : ६ : १७ : १; ११ : १६ : २९ ) । वायुपुराण में पुलोमन को 'विद्याधरपति' कहा गया है ( वायु० : ३८ : १६ ) । इनकी स्त्रियों का नाम विद्याधरी है ( ब्रह्माण्ड० : ३ : ५० : ४० ) । इनके शैवेय, विक्रान्त एवं सौमनस नामक तीन प्रमुख गण थे । इनका विद्याधरपुर नगर था । यह ताम्रवर्ण सरोवर एवं पतंग पर्वत के मध्य स्थित था ( मत्स्य ० ६६ : १८ ) । खेचर, नभचर आदि नाम से पुकारे जाते हैं (ब्रह्म ०४ : ३७ : १० 1
( ५ ) सिद्ध : दस देवयोनि में एक योनि सिद्ध