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जैन राजतरगिणी
पुत्र मेऽवसरो दुष्टस्तादृक् प्राप्तो यत्र मत्प्राणसंदेहे गतिर्नान्या त्वया
८७. 'हे ! पुत्र !! मेरा बुरा समय है और वैसा ही दुरुत्तर प्राप्त हुआ है, जिससे मेरा जीवन सन्देहात्मक स्थिति में है । तुम्हारे बिना दूसरी गति नही है ।
दुरुत्तरः |
मत्पत्रावेक्षणे युक्तं शयितस्य
तवासनम् । आसीनस्य समुत्थानमुत्थितस्य च धावनम् ।। ८८ ।।
८८. 'मेरा पत्र देखने के समय सोये हुए, तुम्हारा उठना तथा बैठे हुए का उठना उठे का दौड़ना उचित है।
कौटिल्य इस राज्य प्रणाली का विरोधी है । विदर्भ मे शुगों द्वारा स्थापित इस प्रकार का राज्य नष्ट हो गया था ( मालविकाग्निमित्र ५१३ ) ।
[ १ : ३ : ८७-८९
किमन्यत् सत्यमेवोक्तं त्यक्त्वापि श्रुतयन्त्रणाम् ।
यद्यागच्छसि तत् तूर्णं पूर्ण प्राप्स्यसि वाञ्छितम् ।। ८९ ॥
श्रीलंका में दो दामेल भ्राता सेन तथा गत्तक श्रीलंका का राज्य पाया था। एक साथ राज्य करना आरम्भ किये । किन्तु बाईस वर्षों के पश्चात् ही राज्य समाप्त हो गया ( महावंश० २१: १०-१२ ) ।
विना ॥ ८७ ॥
८९. 'दूसरा क्या कहूं ? सत्य ही (मैंने) कह दिया है। श्रुति यन्त्रणा त्यागकर, यदि शीघ्र आवोगे, तो अपना वांच्छित पूर्ण पावोगे ।
जैनुल आबदीन द्वैराज्य किंवा द्वैध शासन की बुराई से सतर्क था । वह देख रहा था कि या तो काश्मीर में दोनों भाइयों का दो राज्य स्थापित होकर काश्मीर विभाजित होकर, शक्तिहीन हो जायगा अथवा बाध्य होकर, उसे अपने किसी एक पुत्र के साथ राज्य करना होगा । तत्कालीन मुसलिम राज्यों की नीति देखते हुए उसके लिये खतरे से खाली नहीं था ।
(३) पत्र: पीर हसन लिखता है - 'हाजी खां को सुल्तान ने खुफिया तौर पर पैगाम भेज
दिया कि वह फौरन अपनी जमीअत लेकर दारूल खलीफा पहुँचे ( पृ० १८४ ) ।'
तवक्काते अकबरी में उल्लेख है - 'सुल्तान ने हाजी खां को शीघ्रातिशीघ्र बुलाया ( ४४३ ) ।'
फिरिश्ता लिखता है - 'आदम खा के वहाँ ( क्रमराज्य ) जाने पर आदम खां इस बात से अपमानित हुआ कि सुल्तान ने उसके निष्काशित अनुज हाजी खां को बुलवाया (४७२ ) । ' पाद-टिप्पणी :
८७. बम्बई का ८६वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की ३००वी पंक्ति है ।
पाद-टिप्पणी :
८८. बम्बई का ८७वां श्लोक तथा कलकत्ता की ३०१वी पंक्ति है ।
पाद-टिप्पणी :
८९. बम्बई का ८८वां श्लोक तथा कलकत्ता की ३०९वीं पंक्ति है । कलकत्ता के 'क्ते' के स्थान पर 'क्त' रखा गया है।