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जैनराजतरंगिणी
[१:३:११८-१२० पितुः प्रेममणिं प्राप्य स्वच्छं भक्तिपरायणः ।
हृदयान्नात्यजज्जातु श्रीमाञ् शाीव कौस्तुभम् ॥ ११८ ॥ ११८. पिता के स्वच्छ प्रेममणि को प्राप्तकर, भक्तिपरायण उसने उसे हृदय से उसी प्रकार नहीं त्यागा, जिस प्रकार श्रीमान विष्णु कौस्तुभ' (मणि) को।
विनयक्षिप्तदेवाग्रजानुसंकुचिताकृतिः ।
हकार इव सद्वर्णः सोष्मा सर्वावधिर्वभौ ॥ ११९ ॥ ११९. देवताओं एवं अग्रजों के पीछे विनयपूर्वक संकुचित आकृति वाला सुन्दर वर्ण एवं तेज युक्त वह सद वर्ण एवं ऊष्मावर्गीय ‘हकार' सदृश सदैव सुशोभित हुआ।
न तत्तीर्थं न सा यात्रा न सा लीला न चोत्सवः।
तदाभून्नैव यत्रागाद्धाज्यखानान्वितो नृपः ॥ १२० ॥ १२०. वह तीर्थ' नहीं, वह यात्रा नहीं, वह लीला नही, वह उत्सव नहीं, जहाँ कि उस समय हाजी खाँ सहित नृप नहीं गया। पाद-टिप्पणी :
फिरिश्ता लिखता है-हाजी खाँ ने अपने बुरे बम्बई का ११७वा श्लोक तथा कलकत्ता की व्य
व्यवहारों के प्रायश्चित्त करने का प्रयास करते हुए, ३३१वीं पंक्ति है।
पिता की वृद्धावस्था में सावधानी पूर्वक उसकी सेवा
में तत्पर हो गया ( ४७३ )। ११८. (१) कौस्तुभ मणि : समुद्रमन्थन द्वारा प्राप्त तेरह रत्नों में से एक यह भी रत्न है। पाद-टिप्पणी : विष्णु भगवान अपने वक्षस्थल पर धारण करते बम्बई का ११९वां श्लोक तथा कलकत्ता की है-'सकौस्तुभं ध्येयतीव कृष्णाम्' ( रघु०:६: ३३३वी पंक्ति है । ४९; १०:१०)। कौस्तुभ लवण समुद्र में स्थित १२० (१) तीर्थ : मार्ग, जलाशय, घाट, एक पर्वत भी है। रामा० : बालकाण्ड : १:४५। नदी. स्रोत, पवित्र स्थान यथा मन्दिर, देवालय; क्षेत्र पाद-टिप्पणी :
यथा काशी, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथ, रामेश्वर;
बौद्धों के लिये, लुम्बिनी, गया, सारनाथ एवं कुशीनारा बम्बई का ११८वा श्लोक तथा कलकत्ता की
आदि; मुसलमानों के लिये मक्का, मदीना; शिया ३३२वी पंक्ति है।
लोगों के लिये कर्बला; ईसाइयों के जरूसलेम, ११९. (१) 'हकार' : हठयोग के अनुसार वेथेलहेम, निजारथ, रोम आदि तीर्थस्थान माने 'ह' का 'सूर्य' एवं '8' का अर्थ चन्द्रमा होता है। गये हैं। प्राणवायु की संज्ञा सूर्य एवं अपानवायु की चन्द्रमा जंगम, स्थावर एवं मानस तीर्थ होते हैं। मानी गयी है। इनका ऐक्य करने वाला जो प्राणा- (१) जंगम तीर्थ वर्ग में ब्राह्मण, साधु, महात्मा, योगी याम है, उसे हठयोग कहा जाता है (गोरक्ष पद्धति)। एवं पवित्र पुरुष आते है । (२) मानस तीर्थ में सत्य, 'ह' अक्षर का अर्थ शिव, जल, आकाश आदि क्षमा, दया, दान, संतोष, ब्रह्मचर्य, ज्ञान, धैर्य, मधुर, होता है।
भाषणदि है। (३) स्थावर तीर्थ में काशी, प्रयाग,