________________
१: ३ : ८५-८६]
श्रीवरकृता संतापप्रदमुत्तरायणमिहालोच्यापि रम्यं गुणैयोवाञ्छत्यथ दक्षिणायनममुं ज्ञात्वा हिमार्तिप्रदम् । लोकानामसुखक्षयार्थमुभयोराद्य पुनर्यो भज
त्यायैव परोपकारनिरतः सूर्याय तस्मै नमः ॥ ८५ ॥ ८५. सन्तापप्रद उत्तरायण को गुणो से रम्य बनाकर, जो दक्षिणायन ग्रहण करता है, और उसे भी हिमातिप्रद शीतल जानकर, संसार का दुःख दूर करने के लिए ही दोनों अयनों का आश्रय लेता है, उस परोपकार-निरत सूर्य को नमस्कार है।
क्रमराज्यान्तरं प्राप्ते तस्मिन् द्वैराज्यशङ्कितः ।
स्वाक्षरैर्हाज्यखानं स प्राहैषीत् पत्रमित्यदः ॥ ८६ ॥ ८६. उसके क्रमराज्य' पहुंचने पर, दो राज्य की आशंका से, उसने अपने स्वाक्षर युक्त यह पत्र हाजी खाँ को भेजा
पाद-टिप्पणी :
'द्वैराज्यवैराज्योः द्वैराज्यमन्योन्य पक्षद्वेषानु८५. पाठ-बम्बई
गाभ्या परस्पर संघर्षेण वा विनश्यति ।' अवन्ती में बम्बई का ८४ वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की
इस प्रकार की शासन-प्रणाली एक समय प्रचलित २९८ वीं पंक्ति है।
थी। वहाँ विद एवं अनुविंद दो राजाओं का राज्य
था। छठी तथा सातवी शताब्दी ई० नेपाल में पाद-टिप्पणी :
इस प्रकार की शासन-प्रणाली प्रचलित थी। बम्बई का ८५वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की
नेपाल के दोनों राजवंशों मे कोई रक्त संबंध नहीं २९९वी पंक्ति है।
था। दोनों वंश किसी एक पूर्वज की सन्तान ८६. (१) क्रमराज्य : कमराज्य : द्रष्टव्य टिप्पणी १:१:४०।
शक एवं कुषाण राजाओं ने द्वैराज की शासन (२) द्वैराज : भारतीय शासन प्रणालियों मे प्रणाली चलायी थी। उसमे राजा एवं युवराज द्वराज राजप्रणाली प्रसिद्ध है। मुख्यतया ६ प्रकार संयुक्त शासन करते थे। उनमे स्पलिराजेश-अझेस; की शासन प्रणालियों का उल्लेख मिलता है-- हगान-हगामष, गोडोफर-गड तथा कनिष्क द्वितीय
(१) अराजक, (२) गण, (३) युवराज, (४) हविष्क के युग्म इस प्रकार के द्वैराज के उदाहरण द्वैराज, (५) वैराज्य तथा (६) दलगत राज्य । दो है। पश्चिम भारत में क्षत्रपों के राज्य में पिता-पुत्र राजाओं द्वारा जब शासन प्रणाली चलायी जाती है तो एक साथ राज्य करते थे। दोनों के नाम से मुद्रायें उसे द्वैराज कहते थे। यूनान के स्पार्टा प्रदेश में द्वैराज भी टंकणित होती थी। पिता महाक्षत्रप की उपाधि शासन प्रणाली प्रचलित थी। इसी प्रकार रोम में दो धारण करता था । तथा पुत्र क्षत्रप कहा जाता था। कौन्सल होते थे। कौटिल्य ने वैराज्य शासन प्रणाली सिकन्दर के भारत-आक्रमण-काल मे पाटल राज्य प्रसंग मे द्वैराज का विवेचन किया है। कौटिल्य (सिन्ध ) में पृथक् दो वंश के राजाओं का संयुक्त ( अर्थ ८:२) के मत से इस प्रकार की शासन शासन चलता था ( मैक-क्रिण्डल : इनवेशन ऑफ प्रणाली घातक सिद्ध होती है
इण्डिया बाई अलेक्जेंडर ए ग्रेट, ( पृष्ठ : २९६ ) ।