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१:३ : ७९-८१]
श्रीवरकृता वैरं यो गुरुभिः करोति सततं पुष्णात्यलं दुर्जनाँल्लोभात् संचयमातनोत्यनुदिनं तद्दानभोगोज्झितः। दीनान् ग्राम्यजनांश्च पीडयति यो निर्हेतुमत्याक्षिपं
स्तस्यासन्नविनाशिनः स्वविभवस्तापाय शापायवा ।। ७९ ॥ ७९. पीड़ित होकर राजा क्रन्दन करे, जो गुरुओं से बैर करता है, दान, भोग त्यागकर लोभवश अनुदिन संचय करता है, अकारण आक्षेप करता हआ, दीन ग्रामीण जनों को पीड़ित करता है, ऐसे उस आसन्न विनाशी का अपना बिभव ताप अथवा शाप के लिए होता है ।
कुर्वन् स्वसैन्यसामग्री कुद्ददेनपुरे स्थितः।
एकदा जैननगरे भूपालं सबलोऽभ्यगात् ।। ८० ॥ ८०. कुद्ददेनपुर' में स्थित रहकर अपनी सैन्य सामग्री संग्रह करते हुए, एक बार वह सेना सहित जैननगर में भूपाल के पास गया।
तदिने शङ्कितस्तस्मात् पूर्णकर्णो दुरुक्तिभिः ।
स्वसैन्यसंग्रहं राजा राजधान्यां गतोऽकरोत् ॥ ८१ ।। ८१ उस दिन शंकित तथा दुशक्तियों से पूर्ण कर्ण' होकर, राजा राजधानी में जाकर अपना शैन्य संग्रह किया।
पाद-टिप्पणी:
जमाकर दिये। सुलतान को बड़ी दहशत हुई ७९. बम्बई का ७८वां श्लोक तथा कलकत्ता (पृष्ठ १८४ )। की २९२वी तथा २९३वीं पंक्ति है।
(२) जैननगर = आदम खाँ ने कुतुबुद्दीनपुर पाद-टिप्पणी:
सैन्य संहत कर जैनगिर पर स्थित अपने पिता उक्त श्लोक बम्बई संस्करण का ७९वां श्लोक सुल्तान पर आक्रमण करने की योजना बनायी और तथा कलकत्ता संस्करण की २९४वी पंक्ति है। जैनगिर आया ( म्युनिख : पाण्डु० : ७५ बी०)।
८०. (१) कुद्ददेनपुर : कुतुबुद्दीनपुर, द्र० १ : ७ १६२ हो० व०१६३, क० ६८९ । सुलतान कतुबुद्दीन ने अपने नाम पर बसाया था तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है-वह एक बहुत (जोन : ५२७)। इस समय इस स्थान पर श्रीनगर बड़ी सेना एकत्र करके, सुलतान पर आक्रमण करने के दो मुहल्ले लंगरहठ्ठा तथा पीर हाजी महम्मद के लिये पहुँचा और कुतुबुद्दीनपुर में पड़ाव किया स्थित है । सुल्तान अपने निर्मित कुतुबुद्दीन नगर मे
(४४३ = ६६६ )। दफन किया गया था। उसकी कब्र पीर हाजी मुहम्मद
फिरिश्ता लिखता है-आदम खाँ ने सुल्तान की जियारत के समीप है। वह इस समय राजकीय
की बातों पर ध्यान नहीं दिया और कुतुबुद्दीनपुर
मे सेना संग्रह किया। उसने राजधानी पर आक्ररक्षित स्थान है। झेलम के पांचवे तथा छठे पुल के ।
मण करने की योजना बनायी ( ४७२ )। मध्य स्थित है।
पाद-टिप्पणी: पीर हसन लिखता है-बिल आखिर आदम ८१. बम्बई ८० वा श्लोक तथा कलकत्ता की खाँ ने कुतुबुद्दीनपुर में मुकीम होकर अलम वगावत २९४ वीं पंक्ति है। बुलन्द कर दिया और बहुत से फौज अपने इर्द-गिर्द (१) कर्ण : यहाँ यह शब्द श्लिष्ट है। कर्ण
जै. रा. १३