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१:३ : १०६-१०७] श्रीवरकृता
१०७ पुत्रोत्पत्तिमवेक्ष्य तुष्यति नृपो वोढा धुरः स्यादिति स्नेहात् संपदमस्य यच्छति निजामुल्लङ्घय नीतिक्रमम् । ज्ञात्वा तं बलवन्तमात्मसदृशं तादृग् भिया शङ्कते
येनासन्नसुखो न जातु लभते निद्रां सचिन्ताज्वरः ॥ १०६ ॥ १०६. 'पुत्रोत्पत्ति से नृप प्रसन्न होता है कि राजभार का वहन करने वाला होगा। स्नेह से नीतिक्रम का उल्लंघन करके, अपनी सम्पत्ति उसे दे देता है। पश्चात् अपने समान बलवान जानकर भय से इस प्रकार शङ्कित होता है कि सुख समीप होने पर भी, वह चिन्ताज्वरग्रस्त होकर, कभी निद्रा नही प्राप्त करता।
बद्धवा मल्लिकजस्रथेन स यदा राजालिशाहिर्हतो भ्रातृद्वेषवशाद् बभूव कदनं काश्मीरिकाणां महत् । तद्वज्जैनमहीभुजोऽस्य तनयद्वेषात किमालोक्यते
तन्मा भूद् बहुसन्तति पगृहे देशे विनाशप्रदा ॥ १०७ ॥ १०७. 'जब मलिक जसरथ' द्वारा बाँध कर राजा अलीशाह मारा डाला गया। भ्रातृद्वेषवश काश्मीरियों का महान विनाश हआ। उसी प्रकार पूत्र द्वेष के कारण इस जैन राजा का देखा जा रहा है । अतएव देश में नृपति के घर विनाशकारी बहुत सन्तति न हो।'
भाग्य विपर्यय का उल्लेख (जोन० : ५९७) है-'दूसरे दिन सुल्तान ने बड़ी भारी फौज के किया है। काश्मीर मे हिन्दू लेखक वहाँ की स्थिति साथ सोपोर के तरफ कूच किया (पृ० १८४)।' देखकर नैराश्य हो गये थे। उन्हें आशा नही रह पाद-टिप्पणी: गयी थी कि कभी हिन्दुओं के हाथ में शक्ति आयेगी
१०६ बम्बई का १०५वाँ श्लोक तथा कलकत्ता अथवा उनकी स्थिति सुधरेगी। निराश व्यक्ति ।
की ३१८वीं पंक्ति है। भाग्यवादी हो जाता है। कल्हण भी कर्मवाद का प्रतिपादन करते, भाग्यवादी बन जाता है। शभाशभ पाद-टप्पणी : कर्मों एवं उनके परिणामों में दृढ़ विश्वास करने लगता पाठ-बम्बई । है। जोनराज का आदर्श कल्हण था। कल्हण का बम्बई का १०६वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की अनुकरण करता जोनराज आनी राजतरंगिणी लिख ३१९वी पंक्ति है। रहा था। जोनराज का शिष्य श्रीवर था अतएव
१०७. (१) जसरथ : द्रष्टव्य टिप्पणी जोनश्रीवर अपने गुरु के सिद्धान्त से विरत नहीं हो
नहा हा राजतरंगिणी : श्लोक : ७३२, ७३६, ७८५, ८५८,
- सका (रा० : १ : ३२५; २ : ४५; ४ : ६२० )। जैन राज० : १:७ : ६४; ४ : १५७। जसरथ श्रीवर भाग्य विपर्यय का पुनः उल्लेख १ : ७ : २१५; ।
खुक्खर सरदार था। उसका सम्बन्ध दिल्ली सुल्तानों से २ : ४१ में करता है। द्र० : धर्मशास्त्र का इति
अच्छा नही था। खुक्खरों की लूटपाट की आदत थी। हास : कागो : पृ० ६५८ हिन्दी।
वे सीमावर्ती या समीपवर्ती राज्यों में सर्वदा घुसकर, (२) नगर : श्रीनगर -पीरहसन लिखता उत्पीड़न तथा लुण्ठन करते थे। उनके सम्बन्ध में