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१ : ३ : १११ - ११२]
श्रीवरकृता
श्रुत्वा वराहमूलान्ते पुत्रं प्राप्तं बलान्वितम् । अग्रे बहामखानं तं सत्कर्तुं व्यसृजन्नृपः ॥ १११. बराहमूल' के समीप सेना सहित पुत्र को आया सुनकर, आगे जाकर उसका सत्कार करने के लिए भेजा।
कालापेक्षी हाज्यखानः प्रेम्णाश्लिष्य कृतादरः ।
प्रीतिनिष्ठं कनिष्ठ त भ्रातरं स्वममानयत् ।। ११२ ।।
११२. कालापेक्षी हाजी खाँ आदरपूर्वक प्रेम से आलिंगन कर, प्रेमपूर्ण अपने उस कनिष्ट भाई को मानित किया (वास्तव में भाई जाना) ।
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मीर वाज खान गूजर से जीत कर लिया था । डोगरा काल में रणवीर सिंह के सम्बन्धी राजा मोती सिंह वहाँ के शासक थे । यह विजय के पश्चात राजा ध्यान सिंह के आधीन आ गया तत्पश्चात् उनके पुत्र जवाहर सिंह तथा पौत्र मोती सिंह राजा हुए । जवाहर सिंह पंजाब से एक लाख रुपया वार्षिक पेन्शन देकर निष्काषित कर दिये गये मोती सिंह ने राजा गुलाब सिंह के प्रति निष्ठा प्रकट करने पर पुन: पूंछ प्राप्त किया था । कालान्तर में डोगरा राजा ने पूंछ अपने राज्य में पूर्ण रूप से सम्मिलित कर, उसे काश्मीर का एक भाग बना लिया । यह पूंछ तवी या पलस्ता नदी पर है । मैं यहाँ आ चुका हूँ । नदी का पाट लगभग एक मील चौड़ा है । चारों ओर सम्पतियाली बनी है तथा यहाँ धान की पैदावार खूब होती है। पूंछ के उत्तर में उतुंग पर्वतमाला है । वह पीर पंजाल पर्वत की एक शाखा है वह पर्वत लख्खा क्षेत्र उरी, विकार, तथा दन्ना से पूंछ को विभाजित करता है। पूर्व में पीर पंजाल पर्वतमाला है। दक्षिण में परगना राजोरी जुफल, कोटली तथा पश्चिम में झेलम नदी है । पंजाब से काश्मीर के लिए मार्ग भीमवर राजौरी से पूछ के दक्षिण-पूर्व के कोने से जाता था। पाकिस्तान बनने पर स्थिति बदल गयी है। पूंछ में किला भी है । द्र० १ : १ : ६७ २ : ६८, २०२, ४ : १४४, ६०७ ।
पाद-टिप्पणी
बम्बई का ११०वीं श्लोक तथा कलकत्ता की
१०९
१११ ॥
राजा ने बहराम खाँ को
३२३वी पंक्ति है ।
१११. ( १ ) वराहमूल : बारहमूला = 'उधर हाजीखाँ वारहमूला के इतराफ में शिकस्त खाकर बाप की कुमुक का मुहजिर था। उसके भाई बहराम ली ने सुल्तान के हुक्म से उसका इस्तकबाल किया ( पीर हसन : १८५ ) ।
हाजी खां के बारहमूला के समीप पहुंचने का समाचार पाकर सुल्तान ने बहराम लां को बुलाने के लिए भेजा ( म्युनिख पाण्डु० ७६ ए० तथा तबक्क ते अकबरी: ४४४ ) ।
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हाजी खाँ उस फरमान के अनुसार जो उसे तवक्काते अकबरी में उल्लेख है - 'इसी बीच हुआ था पंजा ( पूछ ) के मार्ग से मारहमूला के निकट पहुंचा । सुल्तान ने अपने छोटे पुत्र बहराम खाँ को उसके स्वागतार्थ भेजा। दोनों भाइयो में शत्रुता हो गयी (४४४-६६७)
फिरिश्ता लिखता है - इस समय सुल्तान का प्रियपुत्र हाजी व बारहमूला शहर पहुँच गया । सुल्तान ने कनिष्ठ पुत्र बहराम खाँ को उसके आगमन पर बधाई देने के लिए भेजा ( ४७३) । पाद-टिप्पणी
पाठ - बम्बई ।
बम्बई का १११वॉ श्लोक तथा कलकत्ता की ३२४वीं पंक्ति है ।
११२ (१) प्रेम दोनों भाइयों ने एक दूसरे
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