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१:३:७१-७४ ]
श्रीवरकृता
तत्तद्विनिग्रहस्थानसावधानमतिस्तदा
स तार्किक इवात्युग्रो राष्च्यैिर्दुर्जयोऽभवत् ॥ ७१ ॥ ७१. उस समय, अति उग्र वह तत् तत् बिनिग्रह' स्थानों पर, सावधान मति होकर, तार्किक की तरह, राष्ट्रियों के लिए दुर्जय हो गया।
जायास्नुषादुहित्राद्या भव्या येष्वभवन् गृहे ।
बलात् प्रविश्य संभुक्ता निलेज्जैस्तस्य सेवकैः ॥ ७२ ॥ ७२. जिसके गृह में सुन्दर स्त्री, बहन, बेटी आदि थी, बलात् प्रवेश करके, उसके निर्लज्ज सेवकों ने भोग किया।
समणडमत्स्यं कुण्डैस्ते पीत्वा शुण्डान्तरे मधु । __ भाण्डा इव मदोच्चण्डाः श्वासैर्भाण्डमवादयन् ॥ ७३ ॥
७३. वे मधुशाला में मण्ड', मत्स्य सहित कुण्डों (प्यालों) से मधु पीकर, भाड़ के समान मद से उदण्ड होकर, श्वासों से भाण्ड बजाने लगे।
तण्डुलाश्च कुसूलेभ्यः शालाभ्यः पीनवर्कराः ।
वीटिकाभ्यः स्वयं मद्य भुक्तं तैर्बलकारिभिः ।। ७४ ।। ७४. वखारों से चावलों को, घरों से पुष्ट बकरों को, वीटिकाओं से मद्य को लेकर, उन बलकारियों ने स्वयं भोग किया।
पाद टिप्पणी
मण्ड का अर्थ खीची हुई शराब भी होता है। बम्बई का ७०वा श्लोक तथा कलकत्ता की (२) भाण्ड = भाड़ शब्द का प्रयोग संस्कृत में २८४वी पंक्ति है।
भी सुदूर पन्द्रहवी शताब्दी से होने लगा था। पुरुष ७१. (१) विनिग्रह · विनिग्रह का अर्थ नाचने-गाने तथा उत्सवों पर नाटक करने वाले होते नियन्त्रण, दमन, पारस्परिक विरोध है । कहाँकहाँ से लोगों को पकड़ा जा सकता है, राजनीतिक
है। इन्हे उत्तर भारत में भाँड़ कहा जाता है। अर्ध दृष्टि है। यह अर्थ यहाँ अभिप्रेत है जहाँ दुर्बल शताब्दा पूर्व भाड़ा का जाात मुसलमान था, व स्थल होता है, वही राजा सर्वप्रथम अपना प्रभाव भडैती पेशा करते थे, परन्तु अब सभी जाति के लोग स्थापित करता है।
भाड़ का काम करते है। कुछ दिन पूर्व लखनऊ के पाद-टिप्पणी :
भाड़ प्रसिद्ध थे। श्रीवर ने भाण्डपति शब्द का बम्बई का ७१वां श्लोक तथा कलकत्ता की उल्लेख किया है। परन्तु वहाँ भाड़ों का मालिक २८५वी पंक्ति है।
अर्थ अभिप्रेत नहीं है। वह सय्य का विशेष है एक पाद-टिप्पणी :
पद है ( क० व० २०५, हो० २०३ )। बम्बई का ७२वा श्लोक तथा कलकत्ता का पाट-टिप्पणी : २६६ वीं पंक्ति है।
७४. बम्बई का ७३वाँ श्लोक तथा कलकत्ता का ७३. (१) मण्ड : उबले चावल को पसाकर माड़ २८७ वीं पंक्ति है । निकाला जाता है। उसे माण्ड या माड़ कहते हैं। पाठ-बम्बई ।