________________
जैनराजतरंगिणी
[१:१:३१ शिल्पिनो विश्वकर्माणं गोरक्षं योगिनां गणाः ।
अवतीर्ण रसज्ञा यं नागार्जुनमिवाविदन् ॥ ३१ ॥ ३१. जिसको शिल्पी विश्वकर्मा', योगिगण गोरक्ष तथा रसज्ञ जन अवतीर्ण नागार्जुन मानते थे।
का नाम पृथा था । उसके पुत्र युधिष्ठिर, भीम एवं इसकी कन्या का नाम बहिष्मती था। उसका विवाह अर्जुन के लिये पार्थ शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रियवत राजा से हुआ था। संज्ञा एवं छाया कन्यायें कालान्तर में पार्थ शब्द अर्जुन के लिये रूढ़ हो विवश्वत की पत्नियां थी। तृतीय कन्या तिलोत्तमा गया। महाभारत में कर्ण के लिये भी एक बार का ब्रह्मा की आज्ञा से उत्पन्न किया था। इसने 'पार्थ' शब्द का प्रयोग किया गया है, क्योंकि कर्ण शिल्प-शास्त्र विषयक ग्रन्थ की रचना भी की थी। भी पथा-कुन्ती का औरस पुत्र था। यहाँ पर पार्थ पूर्वजन्म में उसने घताची अप्सरा को शद्र कूल मे का अर्थ कण है। कर्ण महादानी प्रसिद्ध है, अतएष
जन्म प्राप्त करने के लिए शाप दिया था। उसने एक उसकी तुलना जैनुल आबदीन से श्रीवर ने किया है।
ग्वाला के गृह में जन्म लिया था। ब्रह्मा के कारण ( उद्भोग पवे : १४५ ३ )।
विश्वकर्मा को ब्राह्मण वंश में जन्म लेना पड़ा। पाद-टिप्पणी :
ब्राह्मण पिता एवं ग्वाल माता के संसर्ग से दर्जी, ३१. (१) विश्वकर्मा : ऋग्वेद में विश्वकर्मा कुम्हार, स्वर्णकार, बढ़ई आदि तंत्र विद्या प्रवीण का निर्देश देवता रूप मे मिलता है ( ऋ० : १०.
जातियों का जन्म हुआ ( ब्रह्म वै० :१:१०)। १२। वैदिक साहित्य में सर्वदृष्टा प्रजापति आदिपुराण के अनुसार प्रभास वसु के पुत्र और कहा गया है ( वा० स० : १२:६१)। विश्वकर्मा रचना के पति है ( आदि० : ६६ : २६-२८)। ने पृथ्वी को उत्पन्न किया था। आकाश का अना- उनके एक पुत्र का नाम विश्वरूप है ( उद्योग० : वरण किया था। समस्त देवताओं का नामकरण ९:३-४ )। वृत्रासुर को भी इन्होंने उत्पन्न किया था (ऋ० : १०: ८२ : ३-४)। महा- किया था ( उद्योग० : ९:४५-४८)। भारत में विश्वकर्मा को शिल्प प्रजापति कहा है (२) गोरक्ष : गोरक्षनाथ अथवा गोरखनाथ (आदि : ६० : २६-३२)। ब्राह्माण्डपुराण में हठयोग के आचार्य थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हठ विश्वकर्मा को त्वष्ट्र का पुत्र एवं मय का पिता योगपर 'गोरक्ष संहिता' नामक ग्रन्थ लिखा था। हठमाना है ( ब्रह्माण्ड : १:२:१९)। भागवत ने योगियों में श्री आदिनाथ (शिव), मत्स्येन्द्र. शाबर, विश्वकर्मा को वास्तु एवं अंगिरस का पुत्र माना है आनन्दभैरव, चौरंगी, मीननाथ, गोरक्षनाथ, विरूपाक्ष (भा०:६:६:१५)। विश्वकर्मा ने इन्द्रप्रस्थ, एवं विलेशय संसार में जीवनमुक्त माने गये है। द्वारका, वृन्दावन, लंका, इन्द्रलोक, सुतल, हस्तिना- गोरक्षनाथ जी मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे । चार सिद्ध पुर और गरुण के भवन का निर्माण किया था। जालन्धरनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, कृष्णपाद तथा गोरक्षविष्णु का सुदर्शन, शिव का त्रिशूल, इन्द्र का वन नाथ, चारों योगी नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक माने तथा विजय नामक धनुष बनाया था। विश्वकर्मा जाते हैं । जालन्धरनाथ तथा उनके शिष्य कृष्णपाद की कृति. रति, प्राप्ति एवं नन्दी नामक पत्नियों का सम्बन्ध कापालिक साधना से है। पर्वतीय क्षेत्रों का उल्लेख मिलता है। इसके पुत्र मनु चाक्षुष थे। में मत्स्येन्द्रनाथ तथा गोरक्षनाथ का व्यापक रति से शाम, प्राप्ति से काम, नन्दी से हर्ष पुत्र भी थे। प्रभाव है। चारों योगी सम-सामयिक थे। मत्स्येन्द्रनाथ