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श्रीवरकृता धान्यखारेः क्रयः पूर्वं दीनाराणां शतत्रयम् ।
दुर्भिक्षतस्तदा सार्धसहस्रेणापि नापि सा ॥ २५ ॥ २५. पहले तीन सौ दीनार' से धान की खारी का क्रय होता था, और दुर्भिक्ष के कारण, उस समय डेढ़ हजार में भी, उससे नहीं प्राप्त हो सकती थी।
पाद-टिप्पणी :
था। रजत मुद्रा कम तथा स्वर्ण मुद्रा बहुत ही कम पाठ-बम्बई।
चलती थी। चकवंश राज्य काल में रजत तथा २५ (१) दीनार : दीनार शब्द संस्कृत है। स्वर्ण मुद्राओं का कुछ प्रचलन हुआ था। काश्मीर दशकुमारचरित में दीनार शब्द का प्रयोग किया मे १२ दीनार का एक बाहगनी, दो बाहगनी का गया है-जितश्चासौ मया षोडशसहस्राणि दीनारा- एक पुन्चू, चार पुन्चू का एक हथ, दश हथ का एक णाम्-दशकुमारचरित । भारत में दीनार सुवर्ण ससून, एक शत ससून का एक लाख तथा एक शत मुद्रा था । दीनारियस रोमन शब्द है। रोम साम्राज्य लाख का एक कोटि दीनार होता था। हसन शाह में यह प्रचलित था। जेकोश्लेविका की मद्रा के लिये के पूर्व तूरमान की मुद्रायें प्रचलित थीं। आज भी दीनार शब्द प्रचलित है। हिन्दु राज्यकाल हसन शाह ने जब देखा कि वे अधिक प्रचलित नही में स्वर्ण, रजत एवं ताम्र तीनों धातओं में टंकणित हैं, तो नवीन मुद्रा द्विदीनारी टंकणित कराया। वह होता था। शत कौड़ी का एक ताम्र दीनार होता ।
शीशे की थी। मुहम्मद शाह के समय अशरफी और था। बत्तीस रत्ती सोना का प्रायः स्वर्ण दीनार होता
तंक का प्रचलन था। चकों के समय पण में जजिया था। ईरान तथा सीरिया में अरबों के आक्रमण के
अदा किया जाता था। काश्मीरी पण के विषय में पूर्व दीनार प्रचलित था। अरबों ने अपने विजय के विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है। परन्तु यह पैसा पश्चात् दिरहम मुद्रा चलाया। दीनार शब्द का ही रहा हो।' तद्भव रूप है। आइने अकबरी के अनुसार दीनार (२) खारी : खरवार-शाब्दिक अर्थ होता है एक दिरहम का तीन बटा सातवां भाग होता था। एक खर अर्थात् गदहा भर बोझा। सुलतानों के फरिस्ता लिखता है कि दीनार दो रुपयों के बराबर समय खारी ८३ सेर का होता था। सोलह मासा होता था। रोम दिनारियस मुद्रा रजत थी, का एक तोला, अस्सी तोला का एक सेर, साढ़े सात जबकि भारतीय दीनार स्वर्ण मुद्रा थी। किन्तु पल का एक सेर होता था। चार सेर का एक मन कालान्तर में दिनारियस स्वर्ण मुद्रा भी होने लगा। अर्थात एक तरक या वर्तमान काल का पाँच सेर पेरीप्लस का लेखक लिखता है कि 'दिनारी' स्वर्ण और सोलह तरक का एक खरवार होता था। एवं रजत यूरोप से 'वर्णगजा' अर्थात् भड़ौच भेजा खारी तौल का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जाता था।
वह सोम के एक माप का सूचक है (ऋ० : ४. ३२: __ काश्मीर का मुद्रा प्रणाली हिन्दू राजाओं के १७)। पाणिनि को भी इस तौल का ज्ञान था। समय से मुसलिम काल मे विशेष परिवर्तित नहीं हुई परशियन शब्द खरवार इसी खारी का अपभ्रंश है। थी। सुलतानों के समय मुद्रायें ताम्र की होती थीं। लोकप्रकाश में क्षेमेन्द्र ने उसे खारी या खारिका उन्हें कसिरस अथवा पुञ्छस कहते थे। परन्तु कौड़ी लिखा है । खारी मुद्रा तथा अन्न तौल दोनों के लिये प्रथम इकाई मुद्रा प्रणाली में थी। जैनुल आबदीन प्रयुक्त होता रहा है। खारी शब्द शाली भूमि के ने जस्ता तथा पीतल की भी मुद्रा टंकणित कराया माप के लिये भी प्रयोग सुदर प्राचीन काल में होता