________________
७८
जैन राजतरगिणी
पापहरी
पूर्व प्रवाहोपगता
नदी ।
स्नानात् इतीव तज्जले तूर्णं ममज्जुर्गृहपङ्क्तयः ॥ १४ ॥
१४. पूर्व प्रवाह से (समीप आती) नदी स्नान करने में पापहरण करने वाली है, इसीलिए गृहपक्तियाँ शीघ्र उसके जल में डुबकी लगा दी ।
। १ : ३ : १४-१७
पुराणेषु प्रसिद्धा या विशोका शोकनाशिनी । तदाभूद् विपरीतार्था प्रजाभाग्यविपर्ययात् ।। १५ ।।
१५. पुराणों' में प्रसिद्ध शोकनाशिनी विशोका नदी प्रजा भाग्य विपर्यय के कारण, उस समय विपरीत अर्थ वाली हो गयी ।
येभ्यः प्रतिष्ठा प्राप्ता तान् दुःस्थान् द्रष्टुमसाम्प्रतम् ।
इतीव तोये तत्कालं ममज्जुर्नगरे गृहाः ।। १६ ।।
१६. जिन लोगों ने प्रतिष्ठा की है, उन लोगों को दुःखी देखना ठीक नही है, इसलिए ही मानों नगर के गृह जल में तत्काल निमज्जित हो गये ।
पादटिप्पणी :
शिलादारुमयी
मग्नस्तम्भीभृतचतुर्गृहा । चतुष्पादिव धर्मो या लोकोत्तरणकृद् बभौ ॥ १७ ॥
१७. जिसके चारों स्तम्भ' डूब गये थे, ऐसी शिलादारुमय गृहसंसार पार करने के लिए चतुष्पाद धर्म के समान शोभित हो रहा था ।
व्यार से नौना ग्राम में मिलती वितत्सा मे मिल जाती है । द्रष्टव्य : ३ : १३, १५ ।
(२) विजयेश्वर: विजबोर, विजवेहरा । विजयेश्वर प्राचीन काल में शारदापीठ के समान काश्मीर का दूसरा पीठ था । संस्कृत विद्या का केन्द्र था। सिकन्दर बुतशिकन के समय में सभी मन्दिर नष्ट कर दिये गये थे । तीर्थ तथा क्षेत्र भी था । द्र० १४:४; १ : ५ : २१; ३ : २०३;
४ : ५३२ । पाद-टिप्पणी :
१४. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का २२७ वीं पंक्ति है । दूसरा पद बम्बई के १३ वें श्लोक का द्वितीय पद है ।
१५. (१) पुराण : नीलमत पुराण ( श्लोक
२३९ ) काश्मीर में लक्ष्मी विशोका नदी का रूप धारण कर अवतीर्ण हुई थी ।
आराध्य केशवं देवं तथा लक्ष्मीमचोदयत् । देशस्य पावनायास्य सा विशोकेति कीर्तिता ॥
लक्ष्मी का कार्य समृद्धि, धन तथा सुख देना है । उनके विपरीत हो जाने पर दरिद्रता, दुख आदि का उदय होता है । महाभारत के अनुसार विशोका कुमार कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका है (शल्य० : ४६ : ५ ) । पाद-टिप्पणी :
१६. बम्बई संस्करण का १५वां श्लोक तथा कलकत्ता संस्करण की २२९वीं पंक्ति है ।
पादटिप्पणी :
१७. बम्बई संस्करण का १६वीं श्लोक तथा कलकत्ता की २३०वीं पंक्ति है ।