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जैनराजतरंगिणी
यत्रारमेवातिकठिनास्तन्त्रतन्त्रितयन्त्रिणः
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दुर्मन्त्रिणोऽभजन् राज्ञि तस्मिन् सोऽपि स्वतन्त्रताम् ॥ ६१ ॥
६१. पत्थर के समान कठिन एवं शासकों को अपने शासन 'बाध्य कर देने वाले दुष्ट मन्त्री उस राजा के समय हो गये थे । और वह भी स्वतन्त्र हो गया था ।
स्फीते भीते न कामास्त्रे शास्त्रे न रसिकोऽभवत् ।
केवलं मृगयासक्तश्चमत्कारं श्वभिर्व्यधात् ।। ६२ ॥
६२. प्रचुर भय के प्रति उदासीन, शास्त्र के प्रति नही अपितु कामशास्त्र के प्रति रसिक, केवल मृगया में आसक्त होकर, कुत्तों द्वारा चमत्कार करता था ।
यत्र कुत्रापि तिष्ठतः ।
[ १.३.६१-६५
सरसामन्तरेऽरण्ये
मृगयारसिकस्यास्य
रात्रिर्दिनमिवाभवत् ।। ६३ ॥
६३. सरोवर अथवा अरण्य में जहाँ कही भी रहते, उस मृगया रसिक के लिए रात्रि दिन सदृश हो गयी ।
किमुच्यतेऽन्यन्नीचत्वं यद् भृत्यैर्व्यवहारिवत् । श्येन संहतपक्ष्योघविक्रयो
नगरे कृतः ।। ६४ ।।
६४. अन्य नीचता क्या कही जाय जिसके भृत्य, क्षुद्र व्यापारी के समान बाज' द्वारा पक्षि समूहों को एकत्रित कर, नगर में विक्रय कराते थे ।
का
विभज्यासौ
यौवराज्यमदोद्धतः । नृपत्याज्यं ययौ प्राज्यपरिच्छदः ॥ ६५ ॥
क्रमराज्यं
६५. एक समय यौवराज्य' मद से उद्धत' वह प्रचुर सेवक सहित नृप त्याज्य क्रमराज्य
में गया ।
पाद-टिप्पणी :
६४. ( १ ) बाज : बाज पालने का प्रथा
६१. बम्बई का ६०वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की हमारे वाल्यकाल तक खूब प्रचलित थी । मुख्यतया २७४ वी पंक्ति है। पाद-टिप्पणी :
पठान और मुगल लोग वाम कलाई पर बाज लिये घूमते थे । यह कुलीनता का चिह्न था । बाज उड़ाकर पक्षियों का शिकार किया जाता था । बाज पक्षियों को पकड़कर अपने स्वामी के पास लाता था । इस प्रकार मृत पक्षियों को बेचने से यहाँ तात्पर्य है । पाद-टिप्पणी :
६२. बम्बई का ६१वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की २७५ वीं पंक्ति है । पाद-टिप्पणी :
६३. बम्बई का ६२वीं श्लोक तथा कलकत्ता की २७६ वाँ पंक्ति है ।
कलकत्ता के " रात्रि" के स्थान पर बम्बई का "रात्रि' र्" पाठ रखा गया है ।
पाद-टिप्पणी :
बम्बइ का ६३ व म्लोक तथा कलकत्ता की २७७वीं पंक्ति है ।
पाठ - बम्बई ।
बम्बई का ६४वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की २७८वी पंक्ति है ।
६५. (१) यौवराज्य : द्रष्टव्य टिप्पणी : १:२:५।