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जैन राजतरंगिणी
क्रमराज्ये तदा कुर्वन् कल्लोलैराकुलं जनम् । महानप्रसरो वेगादगाद्
अन्यः
सरोवर:
प्रीत्या किमागतो
२१. उस समय क्रम राज्य मे तरंगों से लोगों को आकुल करता हुआ, जल का महान प्रसार' दुर्गपुर के अन्दर तेजी से प्रवेश किया ।
कोsपि पद्मनागसरोन्तिकम् ।
दूराद् यं दृष्ट्वा विशशङ्किरे ।। २२ ।
२२. दूसरा भी कोई सरोवर प्रेम से पद्मनाग सरोवर के निकट आ गया है क्या ? दूर से जिसे देखकर लोगों ने) शंका की ।
स्वयमुत्पाटयत्यस्मान्
वृक्षवत् सहसागतः । इतीव तत्र वेश्मानि चिक्षिपुः स्वं जलान्तरे ॥ २३ ॥
दूरे समुद्रो मद्भर्ता इत्थं वितस्ता
२३. सहसा आगत, वह वृक्ष के समान हमलोगों को उखाड़ रहा है, इसीलिए मानो वहाँ घर अपने को जल मे डाल दिये ।
[ १ : ३ : २१-२४
दुर्गपुरान्तरम् ॥ २१ ॥
कोऽयं मे समुपागतः । प्रतीपमगमत् तदा ॥ २४ ॥
द्रष्टव्य : रा० : ४ : ६१९ । नवादिरूल अखबार पाण्डु० ( फो० ४५ ए० ) लिपि में भी जैनकदल का उल्लेख मिलता है । पाद-टिप्पणी :
त्रस्तेव
२४. 'मेरा भर्ता' समुद्र दूर है। यह कौन मेरे पास आ गया ?" इस प्रकार त्रस्त सदृश वितस्ता उलटे बहने लगी ।
२१. म्बई का २०वां श्लोक तथा कलकत्ता की २३४वीं पंक्ति है ।
(१) महान प्रसार पाठभेद महापद्मसर भी मिलता है। महापद्मसर मानकर अनुवाद करने से महापद्मसर का जल दुर्ग में प्रवेश किया, अर्थ होगा ।
( २ ) दुर्गपुर : स्थान उलर लेक के तट पर था । इसका केवल यहीं उल्लेख मिलता है । पाद-टिप्पणी
:
२२. बम्बई का २१वां श्लोक तथा कलकत्ता की २३५वीं पंक्ति है । पाद-टिपप्णी :
२३. बम्बई संस्करण का २२वां श्लोक तथा कलकत्ता की २३६वीं पंक्ति है ।
पाठ-बम्बई ।
२४. बम्बई का २३वां श्लोक तथा कलकत्ता की २३७वी पंक्ति है ।
:
( १ ) भर्ता भर्ता का अर्थ स्त्री का पति होता है । नदी स्त्रीलिंग है । उसकी उपमा नारी तथा समुद्र पुलिंग की उपमा पुरुष से दी गयी है । नर एवं नारी का मिलन विवाह का परिणाम है । विवाह पश्चात् ही पुरुष भर्ता की संज्ञा प्राप्त करता है । इसी प्रकार समुद्र से मिलने पर नदी का भर्ता समुद्र हो जाता है । —स्त्रीणां भर्ता धर्म दाराश्च पुंसाम् = (मातंगलीला : ६ : १८ ) । स्त्री का भरणपोषण करने के कारण पति को भर्ता कहा गया है ।
( २ ) उलटे : नदी में आगे जब बढ़ी नदी मिलती है तो गतिशील धारा संगम के समीप रुक कर बहने लगती है । यह परिक्रिया काशी में वरुणा तथा गंगा संगम के कारण प्रायः उपस्थित होती