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राजतरंगिणी
[१: ३ : ४१-४३
तत्रोपविष्टः संतुष्टः सेवयास्य महीपतिः।
भट्टतन्त्राधिकारं च प्रददौ ब्राह्मणप्रियः ।। ४१ ॥ ४१. वहाँ पर स्थित सेवा से प्रसन्न, ब्राह्मणप्रिय महीपति ने भट्ट तन्त्राधिकार' भी प्रदान किया ।
काश्मीरकाश्यदेशीयसर्वगीताङ्किताङ्गने ।
तस्मिन् संवत्सरे राज्ञा चक्रे कनकवर्षणम् ॥ ४२ ॥ ४२. काश्मीर आदि देशीय सर्व प्रकार के संगीत से पूर्ण प्रांगण में उसी वर्ष राजा ने कनक वृष्टि की।
तत्रोपकण्ठे भूपालः स्मृत्यै कण्ठीरवद्विषः ।
हेलालनाम्नो दासस्य हेलालपुरकं व्यधात् ॥ ४३ ॥ ४३. उसी के समीप मतवाले हाथी के हन्ता हेलाल' नामक दास की स्मृति में राजा ने हेलापुर' बसाया।
वा रणसिंह तथा कार पाद-टिप्पणी :
(२) जयसिंह : राजपुरी का राजा था।जोनराज पादटिप्पणी : ने श्लोक ८३१ में राजपुरी के राजा रणसूह का ४२. बम्बई का ४१ वा श्लोक तथा कलकत्ता की अर्थात् रणसिंह का वर्णन, जैनुल आबदीन के विजय २५५वी पंक्ति है। प्रथम पद का पाठ अस्पष्ट है। प्रसंग में किया है। इस विजय का समय नहीं दिया (१) कनक वृष्टि = कल्हण ने कंकण वर्षा का गया है। जैनुल आबदीन की विजय का समय सन् उल्लेख राजा क्षेमगप्त के सन्दर्भ में किया है। १४२० से १४३० ई० के मध्य रखा जा सकता है। कनक वृष्टि का पुनः उल्लेख श्रीवर श्लोक १:४: इस समय रणसूह राजा था। उसके पश्चात् ही जय- ५२ मे करता है। द्रष्टव्य : टिप्पणी : २१ : ६: सिंह राजा हुआ होगा अथवा रणसिंह तथा जयसिंह ३०१। के मध्य कोई और राजा हुआ था। उसका साधिकार निश्चय करना इस समय सम्भाव्य नहीं है। जयसिंह
४३. बम्बई का ४२वा श्लोक तथा कलकत्ता की के पुनः उल्लेख २: १४५ में किया गया है।
२५वी पंक्ति है। पादटिप्पणी
(१) हेलाल = यह शब्द अरबी हिलाल है, ४१ बम्बईका ४० वां श्लोक तथा कलकत्ता की जिसका अर्थ द्वितीया का चन्द्रमा है। हेलाल मुसलिम २५४वी पंक्ति है।
था जैसा उसके नाम से प्रकट है। (१) तन्त्राधिकार = यहाँ पर सैन्य पद किंवा (२) हेलालपुर = कल्हण ने हेलू नामक ग्राम निरीक्षक का अर्थ लगाना ठीक होगा। दक्षिणी का उल्लेख किया है, परन्तु श्रीवर जैनुल आबदीन भारत अभिलेखों के अनुसार तन्त्राधिकारी विभागों द्वारा हेला नामक दास द्वारा बसाये हेलापुर का का निरीक्षक होता था। द्रष्टव्य टिप्पणी : उल्लेख करता है। दोनों भिन्न स्थान प्रतीत होते १:१:९४ ।
हैं । हेलालपुर स्थान का अनुसन्धान अपेक्षित है।