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जेनराजतरंगिणी
शोषितोऽगान्मितैदिनैः ।
प्रतापशिखिनेवाथ शान्ति क्रूरो
जलापूरः सन्निवारे समागतः ।। २९ ।।
२९. थोड़े दिनों में ही मानो राजा के प्रतापाग्नि से शोषित होकर, क्रूर जलपूर : सन्निवार' में आकर शान्त हो गया ।
तद्वर्षे
दानोत्कर्षादिव प्रभोः ।
अथाचिरेण हर्षमन्वभवन्
सर्वे पक्कया शालिसंपदा ।। ३० ।
३०. शीघ्र ही उस वर्ष राजा के अत्यधिक दान से ही मानो, पकी शालि सम्पत्ति से, सब लोगों ने हर्ष का अनुभव किया । प्रजाचन्द्रकलावृद्धयै तूर्णं पूर्णात्मतां
कश्मीरेन्द्रपयोनिधिः ।
प्राप दयापीयूषभूषणः ।। ३१ ॥
३१. प्रजारूप चन्द्रकला की वृद्धि के लिये, दया-पीयूष-भूषण नृप पयोनिधि ने शीघ्र ही, पूर्णात्मता प्राप्त की ।
आत्मेव
कश्चित् सुकृती प्रियास्य
प्रजा
तत्सौख्यवृद्धया तदीयदुःखेन च
सुखिता
दुःखयुक्तः ॥ ३२ ॥
३२. कोई सुकृती नृपति आत्मा सदृश होता है और उसे प्रजा उसी प्रकार प्रिय होती है, जिस प्रकार आत्मा को प्रकृति' । उसी के सुख एवं वृद्धि से सुखी एवं उसी के दुःख से दुःखी होता है ।
२८. (१) ग्वाल बस्ती : गूजरों अथवा घोषों की आबादी से तात्पर्य है -- दूध, गाय, बैल, भेड़े तथा पशुधन का कारबार करते हैं। भारत मे आज भी ग्वालों की आबादी पशुओं के साथ अलग होती है । पाद-टिप्पणी ।
२९. वम्बई का २८वां श्लोक तथा कलकत्ता का २४२वीं पंक्ति है ।
१ ) सन्निवार : यह सोनावारी वर्तमान भूखण्ड है। सोनावारी स्थान जल में थोड़ी भी बाढ़ आने पर डूब जाता है। काश्मीर राज्य की ओर जल की रोकथाम की गयी है । यहाँ पूर्वकाल में जलाधिक्य के कारण खेती कठिन होती थी ।
[ १ : ३ : २९-३२
सोनवार एक स्थान शंकराचार्य पर्वत के दक्षिणपूर्व श्रीनगर का एक भाग है। दोनों ही स्थानों पर जल पहुँच सकता है । श्रीवर का दोनों में किस वर्त -
क्षितीशः
प्रकृतिर्यथैव । यदास्ते
मान स्थान से अभिप्राय है, निश्चित निर्णय के लिए अनुसंधान की आवश्यकता है । पाद-टिप्पणी :
उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का २४३वी पक्ति तथा बम्बई संस्करण का २९वाँ श्लोक है । ३०. ( १ ) उस वर्ष सप्तर्षि ४५३८ = सन् १४६२ ई० = विक्रमी १५१९ = शक संवत् १३८४ । पाद-टिप्पणी :
३१. बम्बई का ३०वां श्लोक तथा कलकत्ता का २४४वी पंक्ति है ।
पाद-टिप्पणी :
बम्बई का ३१वां श्लोक तथा कलकत्ता का २४५वीं पंक्ति है । कलकत्ता मे 'युक्ता' के स्थान पर 'युक्त पाठ उचित है ।
३२. ( १ ) प्रकृति : नैसर्गिक स्थिति, मौलिक