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१: २ : ३१-३३]
श्रीवरकृता पार्थिवोपप्लवे चौरा अन्धकारेऽभिसारिकाः ।
दुभिक्षे चैव तुष्यन्ति धान्यविक्रयिणो जनाः ॥ ३१ ॥ ३१. राजाओं के उपद्रव में चोर, और अन्धकार में अभिसारिकायें ' तथा दुर्भिक्ष में धान्य विक्रेता लोग सन्तुष्ट होते हैं।
अतः क्षुधा महार्घा ये पदार्था धान्यविक्रयात् ।
गृहीतास्तेऽन्यदा पूर्वमूल्येनप्रापयन्नृपः ॥ ३२ ॥ ३२. धान्य विक्रय करके, भूखों के जिन बहुमूल्य पदार्थो को लोगों ने लिया था, राजा ने पहले के मूल्य पर, उनको (वापस) दिला दिया।
दुर्भिक्षभक्षिताक्षोटलोकदक्षः क्षितीश्वरः ।
धिया सरलवृक्षेभ्यस्तैलाकर्षणमादिशत् ॥ ३३ ॥ ३३. दुर्भिक्ष में अखरोट खाने वाले लोगों में दक्ष राजा ने बुद्धिपूर्वक सरल (चीड़) वृक्षों से तेल निकालने का आदेश दिया।
पाद-टिप्पणी :
दिवाभिसारिका के सन्दर्भ में मतिराम लिखते ___३१. ( १ ) अभिसारिका : भानुदत्त ने अभि- हैसारिका की परिभाषा की है-'स्वयमभिसरति
'ग्रीषम ऋतु की दुपहरी चली बाल बन कुज। प्रियमभिसारयति' प्रिय से मिलन हेतु स्वयं जाती है अंग लपटि तीछन लुएँ मलय पवन के पुंज ॥' अथवा प्रिय को बुलाने वाली स्त्री की संज्ञा अभि
-रसराज ( २०२) सारिका से दी गयी है-कवि मतिराम ने परिभाषा
अमर कोशकार ने परिभाषा किया है-'कान्ताकिया है-'पियहिं वुलावै आपुकै आपहि पयपै जाय'
थिनी तु या याति संकेतं साऽभिसारिका' (२:६:१०)। ( रसराज १९०)। कुछ कवि उनको मुग्धा,
कान्तार्थिनी के लिए लिखा गया हैमध्या तथा प्रौढ़ा और कुछ स्वकीया, परिकीया
हित्वा लज्जाभये श्लिष्टा मदनेन मदेन या।
अभिसारयते कान्तं सा भवेदभिसारिका । तथा सामान्य तीन भेद कहा है। कृष्णा, शुक्ला
. सारिका में आते है। कृष्णाभिसारिका, अन्धकार संस्कृत साहित्य मे मिलता है। यह चीड़ वर्ग वृक्ष
___३३. ( १ ) सरल : सरल वृक्षों का वर्णन किंवा अँधेरी रात मे अभिसार करती है। बिहारी की श्रेणी में आता है। कुमारसम्भव में इसका कृष्णाभिसारिका के सन्दर्भ में लिखते हैं
उल्लेख किया गया है-विघट्टितानां सरल द्रुमाणाम्'सघन कुंज धन-धन तिमिर अधिक अँधेरी राति ।
(१:९)। सरल वृक्ष से तेल निकालने का कार्य तऊ न दुरिहै स्याम यह दीप सिखा सी जाति ॥'
बहुत पहले से होता रहा है। उससे विरोजा तथा बिहारी शुक्लाभिसारिका के विषय में लिखते ताड़पीन का तेल आजकल व्यावसायिक ढंग से
निकाला जाता है। सरस निर्यास को गन्धा बिरोजा 'जुबहि जोन्ह में मिल गयी नैक न परति लखाइ। कहते है। यहाँ पर तेल निकालने से तात्पर्य पौधे के डारन लगी अली चली सँग जाइ॥' ताड़पीन का तेल है। सुल्तान ने दुर्भिक्षग्रस्त
सारिका में
तीन भेद परिकीया अभि- पाद-टिप्पणी :