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१ . ३ : ४-८]
श्रीवरकृतां अथाचिरेण गर्जन्तो धृतचापा घना घनाः ।
जनानुद्वेजयामासुः शरासारैरिवारयः ॥ ४ ॥ ४. शीघ्र ही जलपूर्ण एवं इन्द्रधनुष' युक्त, घने घन गर्जते हुए, वृष्टि से उसी प्रकार लोगों को उद्वेजित किये, जिस प्रकार चापधारी अरि शर वृष्टि द्वारा।
वृष्टथुपद्रवसंनद्धाः फलर्द्धिहरणाकुलाः ।
उत्थिता बुबुदव्याजाद् दुष्टा नागफणा इव ॥ ५ ॥ ५. वृष्टि के उपद्रव हेतु सन्नद्ध फल सम्पत्ति को हरण करने के लिये आकुल, मानो दुष्ट नाग से फण ही बुद-बुद के व्याज से (जलस्तर पर) उठे थे।
उत्पन्नध्वंसिनो भावान् करिष्याम्यहमञ्जसा ।
इति ज्ञापयितुं मेघो बुबुदानसृजद् ध्रुवम् ॥ ६ ॥ ६. 'शीघ्र ही समाज उत्पन्न भाव का स्थित्व समाप्त कर दूंगा।' यह विज्ञापित करने के लिए मेघ ने बुद-बुदों का सृजन किया।
वृक्षाः सर्वत्र पत्रान्तःपतवृष्टिस्वनच्छलात् ।
अश्रुबिन्दूनिवामुञ्चन् रुदन्तो जनचिन्तया ॥ ७ ॥ ७. सर्वत्र वृक्ष पत्रों के मध्य पड़ते, वृष्टि के शब्द व्याज से, मानो लोगों की चिन्ता से, रोते हुए, अश्रुबिन्दु गिरा रहे थे।
वितस्तालेदरीसिन्धुक्षिप्तिकाद्यास्तदापगाः ।
अन्योन्यस्पर्द्धयेवोग्रा ग्रामांस्तीरेष्वमज्जयन् ॥ ८॥ ८. उस समय वितस्ता', लेदरी, सिन्धु, क्षिप्तिका, आदि नदियों ने पारस्परिक स्पर्धा से, मानो उग्र होकर, तट स्थित को डुबा दिये । पाद-टिप्पणी :
दिखाई देता है। यह ऊपर उठते, फुहारे के उड़ते ४. (१) इन्द्रधनुष : सप्तरंगों युक्त एक जलकणों पर भी सूर्य किरणों के विक्षेपण के कारण अर्ध वृत्त वर्षाकाल मे सूर्य के विपरीत दिशा, दिखाई देता है। जबलपुर में चूंआधार के जलप्रपात आकाश मे दृष्टिगोचर होता है। सूर्य की किरणे में भी नीचे दिखाई देता है। सूर्य किरणों के अभाव आकाशस्थ जल कणों के पार होती है, तो इन्द्रधनुष मे इन्द्रधनुष का अस्तित्व लोप हो जाता है। बनता है। सूर्य किरणों का विक्षेपण ही इन्द्रधनुष पाद-टिप्पणी : के रंगों का कारण है। आकाश में सन्ध्याकाल पूर्व ५. कलकत्ता के 'हलधि' पाठ के स्थान पर दिशा तथा प्रातःकाल पश्चिम दिशा में वर्षा के बम्बई का 'फलधि' पाठ सार्थक प्रतीत होता है। पश्चात् रक्त, नारंगी, पीन, हरा, आसमानी, नीला वह फल सम्पत्ति का सूचक है। तथा बैगनी वर्गों का विशाल धनुष दृष्टिगोचर होता पाद-टिप्पणी: है। इन्द्रधनुष दर्शक के पीठ पीछे सूर्य के होने पर ८. (१) वितस्ता : झेलम नदी, काश्मीरी