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जैनराजतरंगिणी
दृष्टा सतीसर भीतः स यद्यपि गतो यावन्न नाशमुपयाति
पादटिप्पणी :
८५ (१) सतीसर : काश्मीर मण्डल और सतीसर; नीलमत पुराण सतीसर का वर्णन करता है । काश्मीर उपत्यका पुराकाल में जलपूर्ण थी । उसे उस समय सतीसर कहा जाता था । सतीसर का जल सूख जाने पर, भूमि निकल आयी, वही काश्मीर उपत्यका है । अबुल फजल ने लिखा है कि काश्मीर की समस्त भूमि, उसके शिखरों के अतिरिक्त जलमग्न थी। उसे तीसर कहा जाता था । बर्नियर अपने नवे पत्र में लिखता है
स्थितिः सा घनकालदोषात् । किरातघात -
स्तावत् कथं तदवमुञ्चति
राजहंस ॥ ८५ ॥
८५. जिसने सतीसर' (काश्मीर) में वह सुख स्थिति देखी, घनकाल दोष से भीत, वह ( हाजी खां ) चला गया | राजहंस किरात के घातों से, जब तक नष्ट नही हो जाता, तब तक उसे ( सरोवर) कहाँ छोड़ता है |
'प्राचीन काल में काश्मीर जल से भरा था । थेसली की भी पूर्वकाल मे यही अवस्था थी । वह भी कभी जल से भरा था । शुककाल तक काश्मीर को सतीसर कहा जाता था । सतीसर शब्द काश्मीर उपत्यका के लिये प्रयुक्त होता रहा है। इसमें वारह
मूला से वेरीनाग तक का भूखण्ड सम्मिलित था । अतः काश्मीर राज्य, काश्मीर मण्डल एवं सतीसर के अर्थों में भिन्नता । सतीसर में काश्मीर मण्डल एवं काश्मीर राज्य का समावेश नहीं होता । सतीसर Sharir use किंवा राज्य का एक खण्ड था । जिस समय सतीसर जल पूर्ण था उस समय गहराई ३०० से ४०० फीट तक थी । शारिका शैल तथा अन्य ऊँचे करेवा द्वीप के समान लगते थे। जल स्तर समुद्र की सतह से ५८०० फीट ऊँचा था । मार्तण्ड की ऊँची भूमि जल के अन्दर नही थी । वामजू की गुफा के पत्थरों पर जलस्तरीय पानी का चिह्न आज भी दिखाई देता
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है । इसी प्रकार वामन के पवित्र जलस्रोत के ऊपर जल चिह्न दिखाई पड़ते है सुपियान समीपस्थ रामू की सराय के ऊपर करेवा एक किनारा बनाता था । उसकी उँचाई १०० फीट है । उसके क्षैतिज परतों मे विभिन्नता है । सबसे उँचाई २० फुट की जमीन एलूत्रिल है । उसके पश्चात २० फिट की परत गोलेगोले पत्थरों और भुरभुरी मिट्टी का बना है । सबसे नीचे का परत कड़ी नीली मिट्टी का है । यह परत निश्चय ही झील के जल के निश्चल जल की स्थिति के कारण बन गया था । किन्तु मध्यवर्ती मिट्टी की परत उस समय बनी होगी, जब उपत्यका का जल बड़े वेग के साथ तन्त मूल वाली चट्टान के अवरोध हट जाने के कारण निकला होगा । पामपुर तथा समीपवर्ती करेवा पर, यदि कोई व्यक्ति खड़ा हो जाय, तो उसे चारों ओर ऊँचा पर्वत दिखायी देगा। जमीन भूरी और कुछ बलुई है । यहीं केसर की खेती होती है । बनिहाल-श्रीनगर राजपथ करेवा के समीप होकर जाता है । वहाँ करेवा की बनावट स्पष्ट बताती है कि वहाँ तीन प्रकार की मिट्टियों का स्तर है ।'
बुर्जहोम में गुफाओ की खुदायी एक टीले पर हुई है। जिस समय मैने बुर्जहोम की यात्रा किया था वहाँ तक जाने के लिये कच्ची सड़क बनी थी । सतीसर की बात मुझे स्मरण थी। वहाँ मैने करेवा अथवा टीले के मिट्टियों के स्तर में भिन्नता पाया । यहाँ की खुदायी से स्पष्ट प्रतीत होता है कि टीला के निचले भाग में कभी जल था। उस जल का चिह्न खुले हुये स्थान पर प्रकट होता है ।