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१:१:८६-८७]
श्रीवरकृता अथाष्टाविंशवर्षेऽपि रावत्रलवलादिभिः ।
इतीरितोऽकरोत् खानः कश्मीरागमननस्पृहाम् ॥ ८६ ॥ ८६. अट्ठाइसवे वर्ष, रावत्र' लवलादि द्वारा इस प्रकार प्रेरित खान काश्मीर आने की अभिलाषा की।
स्वामिस्त्वदग्रजीयास्ते कश्मीरसुखभागिनः ।
क्लिश्यामः परदेशेऽत्र वयमेव गृहोज्झिताः ॥ ८७ ॥ ८७. 'हे ! स्वामी !! तुम्हारे वे अग्रज' काश्मीर सुख के भागी है, और हम लोग ही गृह त्यागकर, यहाँ परदेश में क्लेश भोग रहे है।
पाद-टिप्पणी:
है कि 'रावुत्र' पदवीधारी व्यक्ति सैनिक तथा उच्च ८६. (१) अट्राईसवें वर्ष : सप्तर्षि वर्ष पदाधिकारी थे। ४५२८ = सन् १४५२ ई० = विक्रमी १५०९
लोकप्रकाश में 'रावत्र' एवं 'राउत्र' शब्द का सम्वत् = शक १३७४ सम्वत् । कलि० गताव्य
उल्लेख मिलता है । क्षेमेन्द्र ने लिखा है-'गान्धर्व४५५३ वर्ष।
वले रावुत्रामुकेन रावुत्रामुक पुत्रण' (पृष्ठ २३) तथा
'श्री प्रेकाष्ठेले रावत्र अमुकस्य यथा मदीय' ( पृष्ठ (२) रावत्र : रावुत्र शब्द का उल्लेख शुक २४)। इससे स्पष्ट होता है कि रावत्र जाति किंवा ने (१: १ : २२, ६१, १४८) किया है। पदवी वाचक शब्द राजानक एवं डामर के समान वहाँ 'रोवत्र का पाठभेद 'रावत्य' मिलता है। था। धनविदों के लिये इस शब्द का प्रयोग किया 'रावत्र' 'राबुत्र' 'रावत्य' शब्द समानार्थक प्रतीत
जाता रहा है तथा धनुष विद्या में श्रेष्ठ जनों को यह होते है । 'रावत्र' नाम वाचक शब्द है । वंश, कुल मलतः पदवी दी जाती रही है, जो कालान्तर मे एक एवं जाति किंवा उपजाति का द्योतक है। श्रीवर ने
ग घातक ह। श्रावर न वंश, कुल किंवा जाति अथवा उपजाति वाचक शब्द पुनः उल्लेख (२ : १२) किया है। शुक तथा बन गया। लोकप्रकाश मे रावत्र का पर्याय विद्वान, श्रीवर दोनो ने इसे नामवाचक माना है । कल्हण तथा कवि, महाकवि, प्राइविवाक आदि दिया गया गया जोनराज राजतरंगिणियों मे मुझे रावत्र किंवा राउत्र है ( पष्ठ : ४ श्रीनगर : संस्करण)। लोकप्रकाश शब्द नहीं मिला। 'रावत' एक ब्राह्मण जाति है, विषयानुक्रमणिका क्रम संख्या २१ के 'पण्डितभेद' पृष्ठ जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निवास करती है । यह ४ से स्पष्ट होता है कि रावत्र किंवा राउन ब्राह्मणों जाति एवं काश्मीर के 'रावत्र' एक ही है अथवा की एक उपजाति थी। रणपुत्र से राणा जिस प्रकार भिन्न यह अनुसन्धान का विषय है। रावत का अर्थ हो गया है, उसी प्रकार रणाउन = रणौत शब्द है। सरदार, सामंत, लघु राजों, शूर, वीर योद्धा तथा काश्मीर में ठाकुर, राजपूत, शाही, प्रतिहार, क्षत्री सेनापति होता है । जमीन्दारों रियासत के राजाओं, आदि कूल बाहर से आकर, आबाद हो गयी थी। इसी सामन्तों तथा जागीरदारों की एक पदवी थी। यह प्रकार, यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि शब्द राजपुत्र के समकक्ष है। राउत्त एवं रौत्र, दोनों भारतीय रावत जाति के कुछ योद्धा काश्मीर में शब्द राउत्र किंवा रावत्र संस्कृत शब्द के अपभ्रंश आकर आबाद हो गये थे। हैं। उनका अर्थ एक है।
___ पाद-टिप्पणी : शक तथा श्रीवर दोनों के वर्णनों से प्रकट होता ८७. (१) अग्रज . ज्येष्ठ भ्राता आदम खाँ ।