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१:२:६-७ ]
येषां
श्रीवरकृता
सुखं वितनुते विधिरन्नवृद्धथा दुर्भिक्षदुःखमपि संतंनुते स तेषाम् ।
वृष्टया विवर्धयति यानि तृणानि मेघस्तान्येव शोषयति
सर्वशस्यसमृद्धेऽस्मिन् अकस्मादभवच्चैत्रे
भावितुषारभारात् ।। ६ ॥
६. विधाता जिन लोगों को अन्न वृद्धि करके सुख देता है, उन्हीं को वह दुर्भिक्ष दुःख भी प्रदान करता है। मेष वृष्टि द्वारा जिन तृणों को वर्धित करता है, भविष्य में तुषारपात से उन्हें सुखा भी देता है।
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षट्त्रिंशवत्सरे । पांशुवर्षणम् ॥ ७ ॥
भारतीय शासन पद्धति के अनुसार राजा किसी व्यक्ति को युवराज बना सकता था। युवराज के भी मन्त्री होते थे । उन्हें युवराज पादीय कुमारामात्य कहा जाता था । गहड़वाल नरेशों के अभिलेखों मे राजा, राज्ञी, युवराज, मन्त्री, पुरोहित, प्रतिहार तथा सेनापति का उल्लेख मिलता है। युवराज प्रायः पुत्र बनाया जाता था। जैनुल आबदीन ने सर्वप्रथम अपने अनुज महमूद तत्पश्चात आदम खाँ ( १ : २ : ५ ) तत्पश्चात हाजी खाँ को (१ : ३ : ११७) युवराज बनाया था । मृत्यु काल में किसी को नही बनाया । हैदर शाह जब सुलतान हुआ, तो अपने चाचा बहराम खाँ को युवराज पद देने का प्रस्ताव रखा था। सुलतान कुतुबुद्दीन को कोई सन्तान नहीं थी उसने हस्सन को युवराज बनाने का निश्चय किया था ( जोन० : ४८५ ) । सुलतान जमशेद ने अपने भाई अलाउद्दीन को युवराज बनाया था ( जोन० ३२९ प्रष्टव्य म्युनिख पाण्ड० ७५ ए०, तवकाते अकबरी : ३ : ४४३ तारीख हसन
देशे
गगनात्
७. हर प्रकार के फसल से सम्पन्न इस देश में, ३६' वें वर्ष के चैत्र मास में, आकाश से अकस्मात धूल वृष्टि हुई 1
के चन्द्रदेव कन्नौज में तीन उल्लेख मिलता है (इ०: पाण्डु० : २ १०३ बी०; जोन० : ६८८, ७०२ आई० : ९ : ३०२, ३०४ ) । तथा ७३२ ) ।
( २ ) ६ वर्ष : फिरिस्ता लिखता है -सुल्तान ने इस समय आदम खाँ को अपना प्रतिनिधि तथा युवराज घोषित कर दिया । आदम खाँ ने वहाँ ६ वर्ष वर्ष तक शासन किया ( ४७२ ) । तवकाते अकबरी में भी उल्लेख है— तत्पश्चात आदम खाँ ने देश का ६ वर्ष तक पूरे अधिकार के साथ शासन किया ( ४४३ = ६६५ ) | कर्नल विग्गस तथा रोजर्स भी लिखते हैं कि आदम खाँ राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में लिखा है-आदम खाँ अब श्रीनगर में अपने पिता के साथ ६ वर्षों तक रहा और राज्य के प्रशासन में अधिक भाग लेता था ( ३ : २८३ ) ।
पाद-टिप्पणी :
श्रीवर दुर्भिक्ष का वर्णन आरम्भ करता है। ७. ( २ ) छत्तीसवें वर्ष : सप्तर्षि ४५३६ = सन् १४६० ई० = विक्रमी १५१७ सम्बत = शक १३८२ - कलि गताब्द ४५६१ वर्ष । पीर हसन हिजरी ८७५ अकाल का समय देता है ( पृ० १८४) ।