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श्रीवरकृतां
कालेनादमखानेऽथ भुट्टान् जित्वा हाज्यखानोऽकरोधात्रां लोहराद्रौ
८२. समय पर भुट्टो को जीतकर, आदम खाँ के खान लोहराद्रि की यात्रा की ।
१ : १ : ८२-८४ ]
कथं हि च्छुरिकायुग्ममेककम्बुनि
स्थाप्यते ।
इति ज्ञात्वा सुतौ राज्ञाकारितौ निर्गमागमम् ॥ ८३॥
८३. एक मियान में दो तलवार कैसे रखी जा सकती है ? ऐसा जानकर, राजा ने दोनों पुत्रों का आगम एवं निर्गम कराया ।
जनकस्यान्तिके
आदमखानः
स्नानपानलीलोत्सवादिकम् ।
सत्राणो विदधेऽनुदिनं ततः ॥ ८४ ॥
समागते ।
नृपाज्ञया ।। ८२ ॥
आनेपर राजा की आज्ञा से हाजी
पाद-टिप्पणी |
८२. ( १ ) भुट्ट : लद्दाख, तिब्बत आदि से तात्पर्य है । उत्तर पूर्वीय काश्मीरी सीमा तथा केम्ब्रिज हिस्ट्री के अनुसार बालतिस्तान ही छोटा तिब्बत है ( ३ : २८३ ) ।
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८४. तत्पश्चात सुरक्षापूर्वक, आदम खाँ' प्रतिदिन स्नान, दान, लीला, उत्सव आदि पिता के पास ही करता था ।
( २ ) आदम खान सुलतान ने सन् १४५१ ई० में आदम खां को भुट्ट अर्थात लद्दाख जीतने के लिये भेजा । लद्दाख ब्लो- ग्रोस च्मोग - इदन ( सन् १४४०-१४७० ई० ) के नेतृत्व में स्वतंत्र हो गया था । आदम खां जीत कर लौटा और विजय द्वारा प्राप्त वस्तुये राजा के चरणों में रख दिया ( म्युनिख पाण्डु० : ७४० इण्डियन एण्टरक्वेरी : ३७ : १८९; तवक्काते अकबरी: ४४२ ) ।
फिरिस्ता लिखता है - आदम खाँ तिब्बत जीतने में सफल हुआ और गौरव के साथ वे ਟ के साथ श्रीनगर लौट आया ( ४७१) ।
(३) हाजी खाँ तवक्काते अकबरी में उल्लेख है — 'सुलतान ने आदम खाँ के प्रति कृपा दृष्टि दिखाई और हाजी खाँ सुलतान के आदेशानुसार लोहर काट पहुँचा' (४४२ - ६६३) । फिरिस्ता के
घटनाक्रम का वर्णन कुछ उलटा हो गया है । वह आदम के बाहर जाने ही के समय हाजी खाँ को भी लोहरकोट भेज देता है । श्रीवर का वर्णन एक प्रत्यक्षदर्शी होने के कारण ठीक मालूम पड़ता है । श्रीवर पर्णोत्स तथा लोहरकोट में अन्तर करता है। कर्नल ब्रिग्स ने लोहकोट नाम दिया है ( ४ : ४७१) ।
( ४ ) लोहराद्रि : जोनराज ने लोहराद्रि का उल्लेख सुलतान कुतुबुद्दीन के प्रसंग में किया है ( जोन० : ४६९, ४७४ ) । वह लोहर कोट अथवा लोह कोट है । यदि एकार्क पहाड़ी पर होता था, तो उसमे पर्वत नाम भी लगा देते थे । जैसे चर्णाद्रि, (चुनार) आदि । जोनराज ने भी लोहरकोट के लिए लोहराद्रि नाम का प्रयोग किया है ( जोन० : ४६९, ४७४ ) । हाजी खाँ सन् १४५२ ई० मे लोहर भेजा गया । के माल पादटिपण्णी :
८४. ( १ ) आदमखान : तबकाते अकवरी में उल्लेख मिलता है—
'सुलतान आदम खाँ को हाजी खाँ के दुर्व्यवहार के कारण सर्वदा अपने पास रखता था' (४४२ ) ।