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जैनराजतरंगिणी
स्रोत : जोनराज कृत राजतरंगिणी भाष्य मे जिन पुस्तकों का उल्लेख किया गया है वे ही इस पुस्तक के स्रोत है। संस्कृत पुस्तको की अपेक्षा फारसी पुस्तके अधिक स्रोत का कार्य करती है। पाण्डुलिपियो की माइक्रोफिल्म रिसर्च विभाग जम्मू काश्मीर सरकार से प्राप्त हुई है। मूल संस्कृत पाण्डुलिपियाँ वाराणसेय संस्कृत तथा काशी विश्वविद्यालय से प्राप्त किया है।
श्रीवर अपने इतिहास का स्वयं प्रत्यक्षदर्शी स्वयं साक्षी था। आखों देखा इतिहास लिखा है। इस राजतरंगिणी मे अन्य स्रोतों का महत्त्व नगण्य है। श्रीवर के पूर्व लिखे, इतिहास ग्रन्थ नहीं मिलते । उसकी समकालीन रचनायें भी नहीं मिलती। फारसी ग्रन्थ जो भी प्राप्य है, उनका आधार स्वयं श्रीवर है। श्रीवर के अनुवाद के आधार पर ही फारसी इतिहास लेखकों ने अपनी रचनायें की है। पाठ की अशुद्धि तथा संस्कृत का ज्ञान न होने के कारण नामों के उच्चारणों में अन्तर पड गया है । तथापि फारसी रचनायें जिन स्थानों पर श्रीवर शान्त है, कुछ प्रकाश डालती है । इस विषय पर द्रष्टव्य है। जोनकृत राजतरंगिणी तथा शुक कृत राजतरंगिणी 'स्रोत' शीर्षक ।