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जैन राजतरंगिणी
गंगा वीरगति प्राप्त किये। सुल्तान ने पुत्र हाजी खां तथा उसके सैन्य का अद्भुत पराक्रम देखकर अपना
।
पुनर्जन्म माना । युद्ध पश्चात् हाजी खां पराङ्मुख हुआ । चिभ देश चला गया का कोई किसी भी अवस्था मे वध न करे । सुल्तान ससैन्य श्रीनगर लौट गया। पर आदम खाँ को प्राथमिकता देने का विचार किया । क्रमराज आदम खाँ को दे
सुल्तान ने आज्ञा दी । पुत्र सुल्तान हाजी खाँ के स्थान
दिया ।
लौकिक संवत् ४५३६ = सन् १४६० ई० मे दुर्भिक्ष पडा । मार्गशीर्ष मे हिमपात हुआ । तेल, घी, नमक आदि अन्न से सस्ते हो गये थे । कन्द पर जीवन निर्वाह होने लगा। तीन सौ दीनार का एक खारी चावल मिलता था । पश्चात् १५ सौ दीनार में भी एक खारी धान मिलना कठिन हो गया । सुल्तान ने कोश के माध्यम से, कुछ मास तक प्रजा की रक्षा की।
लौकिक ४९३८ = सन् १४६२ ई० में घनघोर वृष्टि हुई । जल प्लावन ने फसल नष्ट कर दिया। नदियाँ उमड़ पड़ीं। विशोक का जल विजयेश्वर में तथा महापद्मसर का दुर्गपुर मे प्रवेश किया। सुल्तान ने कृषकों तथा जनता की रक्षा की। सुल्तान ने बाढ से रक्षा के लिये स्थान-स्थान पर नगर, ग्राम तथा आबादी निर्माण की योजना कार्यान्वित की ।
राजा जन्म दिवस का उत्सव उत्साह पूर्वक मनाता था। विदेश के राजाओं को भी सम्मान एवं उपहार दिया जाता था । संगीत सभा में सुल्तान कनक वृष्टि करता था ।
सुल्तान ने अन्न सत्र योगियों, फकीरो एवं गरीबों के क्षुधा शान्ति के लिये खुलवाया । योगियों का सुल्तान सत्कार करता था । सुल्तान वितस्ता जन्मोत्सव, उत्साह से मनाता था । दीप मालिका होती थी । संगीत होता था । लोग दान पुण्य करते थे । स्त्रियां पूजा करती थीं ।
आदम खाँ ने इसी समय, काश्मीर पर, ससैन्य आक्रमण किया । सुल्तान के मंत्री अविश्वासी एवं दुष्ट हो गये थे । वे स्वार्थी किसी न किसी पुत्र को उभाड़ते थे । संघर्ष की प्रेरणा देते थे। मंत्री गण कुत्तों से शिकार करते थे । स्त्री व्यसन में थे । वाज द्वारा शिकार किया जाता था। आदम खाँ तथा उसके सैनिकों का सैनिक स्तर गिर गया। किसी की सुन्दर बहु-बेटी रक्षित नही थी । शराब का दौर चलता था ।
सुल्तान पुत्र के कुकृत्यों से दुखी हो गया। आशंकित था । सैनिक तैयारी करने लगा । आदम खाँ के नगर में प्रवेश किया । पिता पुत्र मे युद्ध आसन्न था । सुल्तान विवश हो गया। हाजी खाँ को सहायतार्थ बुलाया । पिशुनों के कारण आदम खाँ और सुल्तान मे पुनः मनमुटाव हो गया। भयंकर युद्ध हुआ । इस समय एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया था, जो दोनों पक्षों से आर्थिक लाभ उठाता था । उनकी किसी के प्रति निष्ठा नहीं थी । सुल्तान ससेन्य सुय्यपुर पहुँच गया । दोनों तटों पर पिता एवं पुत्र की सेनायें स्थित हो गयी ।
हाजी खाँ पूछ से चलता, काश्मीर मण्डल पहुँच गया। सुल्तान के कारण कनिष्ठ पुत्र बहराम खाँ एवं हाजी खाँ दोनों भाइयो में मित्रता हो गयी । आदम खाँ अकेला हो गया। काश्मीर त्याग दिया । विदेश चला गया। वह शाहिभंग पथ से सिन्धु पार कर, सिन्धुपति के पास पहुँचा । सुल्तान लौकिक वर्ष ४५३३ = सन् १४५७ ई० में प्रवेश किया। हाजी खाँ को सुल्तान ने युवराज बना दिया ।
हाजी खाँ एवं सुल्तान राजकाज तथा उत्सवों में भाग लेते थे । चैत्रोत्सव में राजा पुष्प लीला की इच्छा से, नाव द्वारा मडवराज गया। राजा अवन्तिपुर एवं विजयेश्वर के राजभवनों में निवास करता था । यात्राओं में रंगमंच बनता था। नाटक होता था। नर-नारियों के साथ गान एवं नृत्य में समय व्यतीत होता था । आतिशबाजी होती थी ।